कन्यादान

(सयानी लड़की की डायरी से)

चित्र : गूगल से साभार 

10 माघ 2000

 आज सुबह से घर में मेरे सयाने होने के चर्चे हिकारत के साथ चल रहे थे। बाबूजी ने शाम की चाय पर एक बैठक बुलाई थी। उसमें बड़े दादाजी, अपने बेटे अनिल चाचू, बड़ी बुआ और पूजा बुआ के साथ आए थे। सभी मेरे कमरे की ओर इशारा करते हुए बातें कर रहे थे। लग रहा था जैसे कि मैं अपराधी हूँ। तू बतासयाने होने में क्या मेरा दोष है? माँ जब चाय देने आयीं तो ”नीम चढ़ी करेली।कहकर दादी, माँ को चिढ़ा रही थीं। माँ बेहद चिंतित दिख रही थीं।

ऐसा करो किशोर, गढ़ी वाले ज्योतिषी जी को अपनी बिटिया का हाथ दिखवा ही डालो। रोज़-रोज़ का तुम्हारा सर दर्द दूर हो जाए, बड़े पहुँचे हुए संत हैं। दो वर्ष हुए न! तुम्हें लड़का खोजते?” बड़े दादाजी ने बाबूजी से ये कहते हुए पूछा था। बाबूजी ने मुरझाया-सा अपना चेहरा हाँ में हिलाया और मौन हो गए। गमगीन माहौल को देखते हुए उदास सभा समाप्त कर दी गयी। 

25 माघ 2000 

आज दादाजी वाले ज्योतिषी जी आए थे। कह रहे थे,यजमान, आपकी पुत्री सौभाग्यशालिनी है। अच्छा घर-वर मिलने की पूरी संभावना है। जिस घर में जाएगी, नोटों की गड्डियों पर सोएगी। बस इसके हाथ से काली माता के मंदिर में साँझ में घी का दीपक एक साल लगातार जलवाते रहो। याद रहे इस कार्य में नागा न होने पाए। इसी बीच कोशिश करके आप कुम्हार से उसका चाक पर इस्तेमाल किया हुआ डोरा (धागा) माँग लाओ। आपको बता दें, वह उसे देने में आनाकानी करेगा लेकिन कुछ भी ले-दे कर आप उसे ले ही आना। तीसरे पहर जब, सब सो रहे हों, स्नान कर शिवलिंग पर जाकर उसे चढ़ा देना। ये ध्यान रखना, कोई आपको देख न पाए। अगर आपने इस कार्य को पूरे मन से किया तो फिर समझिये ना के बराबर दहेज लगने का ये राम बाण उपाय आपने कर डाला है।ज्योतिषी जी को मुँह माँगी दक्षिणा देकर विदा कर बाबूजी के चेहरे से खुशी छलकी पड़ रही थी।

26 माघ 2001

आज काली माता के मंदिर में दीपक जलाने का आख़िरी दिन था। आँधी, तूफ़ान, बरसात और ठंडी ने भी मेरा रास्ता न रोक पाया था। अपना सिर झुकाए पाँव के पास की जमीन देखते हुए मंदिर जाना और उसी विधि से दीपक जलाकर घर लौट आना ही मेरी नियति थी। लेकिन आज दीप दान कर जब लौट रही थी, कुछ लड़के मंदिर के पास खड़े होकर हँस रहे थे। मैंने सोचा, होगा कुछ उनका अपना लेकिन जब मेरे कुरते के रंग के बारे में और चाल मधुरिया चले माधुरी उनमें से किसी एक ने बोला तो मैंने सिर उठाकर उनकी ओर देख लिया। सब खिलखिलाकर हँस पड़े और मैं सहम कर घर लौट आई। मेरे घर पहुँचने से पहले ही लड़कों के हँसने की खबर बाबूजी को मिल चुकी थी। उस घटना में वे मेरी गलती मान रहे थे और आगबबूला होकर माँ को भी बुरा-भला सुना रहे थे। माँ ने मुझे हेय दृष्टि से देखा और मारने झपटी। तभी कुम्हार के डोरे वाले अनुष्ठान के फलित होने की बात बाबूजी ने माँ को बताई और वे मुझे मारना भूल गयीं। दोनों खुश थे मगर मेरा मन तब से आहत है। मुझे मर जाने का ख्याल न जाने क्यों बार-बार आए जा रहा है। 

17 अक्तूबर 2001 

मन बहुत उदास है। बाबू जी को लड़का मिल चुका है। लोग अलग-अलग तरह की बातें कर रहे हैं। कोई कहता, लड़का शराबी है, कोई चरसी, कोई जुआरी लेकिन बाबूजी कहते हैं कि सब के सब मुझ से जलते हैं इसलिए जलनखोरी में ऐसा कहते हैं। बहरहाल उन्हें जमाई हीरा मिला है।सोनरूपा की माँ, भाग्य हैं हमारे, मुफ़्त में घर-वर मिल गया। बड़े अच्छे लोग हैं। कुम्हार केडोरेवाली बात सटीक निकली। इस सर्दी लड़की का ब्याह निबटाकर ज्योतिषी जी को मँहगी वाली ऊनी पोशाक सिलवाऊँगा।बाबू जी, माँ से धीरे-धीरे कह रहे थे। मैंने खिड़की की ओट से सुना। 

25 जुलाई 2003 

चित्र : गूगल से साभार 

मेरी शादी को अभी बस तीसरा साल ही लगा है लेकिन दर्पण कहता है कि मैं तेरह साल की ब्याहता लगने लगी हूँ। हाथों की लकीरों में जो पैसा ज्योतिषी ने गुँथा देखा था, उनमें कालिख़ जम चुकी है। गड्डियों की बात ही क्या हथेली पर ज़रूरत के लिए भी कभी पैसा नहीं आया। उस पर आते-जाते हुए बाबूजी कहते हैं, ब्याही बेटियों की शोभा अपने घर रहने में होती है। इसलिए मायके का मोह त्याग चुकी हूँ लेकिन जब बिल्कुल सहा नहीं गया तो कुछ दिन पहले ये सोचकर कि भले बाबूजी नाराज़ हों, पति की करतूतें और अपने जीवन की दुर्दशा  चिट्ठी में लिखकर भेज दी थी। आज उसी का जवाब आया है। उन्होंने लिखा है,”सोनरूपा, तुम संसार में कोई अकेली स्त्री नहीं, जिसका पति शराबी-जुआरी है, आदमी की जात होती ही ऐसी है इसलिए उसी के साथ सामंजस्य बनाना सीखो। यहाँ आने की सोचना भी मत लोग क्या कहेंगे?” 

डायरी सखी! माना कि मैं दुनिया की अकेली स्त्री नहीं हूँ लेकिन बाबूजी की तो अकेली थी?

***

योगराज प्रभाकर जी के संपादन में प्रकाशित 


 






 

Comments

  1. कितनी पीड़ा छिपी है इस कथा में पर इलाज एक ही है लड़कियों का शिक्षित और आत्मनिर्भर होना

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