बात नई किताब की ....

 

ओढ़कर अपना आत्मविश्वास 

तुम बना डालो अपने 

सबसे थके दिन को अमर

जिंदगी का अभियान सालों में नहीं 

प्रत्येक दिन में छिपा है

सोचकर ये बना लो 

जीवन की धूप से माँग टीका 

सबसे ज्यादा ज़रूरी है तुम्हें 

अपने लिए सुहागिन बने रहना.

 

इस संग्रह की ज्यादातर कविताएँ स्त्री-सम्बंधी हैं। फिर भी मैं कोई नारेबाजी न करते हुए प्रचलित रूढ़ियों का विखंडन ही इनका स्थाई स्वर मानती हूँ। मैं चाहती हूँ कि अपनी मुक्ति की कामना के लिए स्त्री अपने जाग्रत अवस्था में स्वयं संघर्षरत रहे। वह किसी के प्रति किसी भी प्रकार की अपेक्षाएँ न करते हुए अपनी भूमिका लिखे। वैदिक या आदिकाल की स्त्री-भूमि को अगर देखा जाए तो स्त्री-पुरुष की जमीन साझी दिखती है। अनुभूति और अभिव्यक्ति के दायरे में खड़ी स्त्री कभी भी कमजोर नहीं हो सकतीबस उसे अपनी बात कहने में धैर्य और सहानुभूति की अभिलाषा का रुख अपनी ओर मोड़ना होगा। जिस तरह कविता को हमेशा विवेकवान,भावनात्मक,समन्वय-सक्षम,समाज-संरचना में दूरदर्शी दूरबीन सरीखी मानती आई हूँउसी तरह स्त्री की मेधा काम करे और वह अपने युद्ध अपनी दम पर पूरे विधान के साथ लड़े भी और जीते भी। कविता निजपरिधि में मनुष्य के प्रति प्रायश्चित करने के अनेक अवसर निर्मित करती है। जबकि कविता भोली-भाली हैफिर भी वह बुद्धू नहीं है। इसी तथ्य को सोचते हुए मैं स्त्री को कविता की सहोदरा के रूप में देखने की पक्षधर बन जाती हूँ। जिस तरह कविता अपने होने में सर्वोपरि रचती हैउसी तरह एक स्त्री को दूसरी स्त्री को जन्म देते ही उसके प्रति सोचना होगा। कविता की चौहद्दी पर धंसकर देखा जाए तो कविता अपनी परिधि में रहकर रस उत्सर्जित करती दिखाई पड़ती है।

कविता कभी ये नहीं कहती कि उसे उपन्यासनिबंधआलेखआत्मकथा या और कुछ बना दिया जाए,वह जो हैउसी में स्थितप्रज्ञ है। ठीक उसी प्रकार स्त्री की तर्जनी उँगली किसी और की ओर नहींअपनी ओर उठी होनी चाहिए। उसे सिर्फ स्त्री बने रहने में स्वयं को सौभाग्यशाली मानना होगा। बड़े-बड़े विचारक कहते हैं कि स्वयं से की गई प्रतिस्पर्धा से व्यक्ति का व्यक्तित्व निखर उठता है। उसी तरह अगर स्त्री भी पुरुष के साथ तुलनात्मक अध्ययन न करते हुए अपने होने को सुनिश्चित करे तो वह अपना होना सार्थक कर सकती है। अपने और अपनी अगली पीढ़ी की स्त्री-सुरक्षा हेतु जाग्रत स्त्री को सचेत रहना होगा। अपने इर्द-गिर्द जकड़ी बर्फीली परंपराओं का भंजन इतनी सावधानी से करना होगा कि पुरुष-महल की दीवारों को क्षति न पहुँचे। इस बात को यहाँ इसलिए कहना उचित है क्योंकि जो पुरुष क्षतिग्रस्त होगावह स्त्री का अपना कोई सगा बेटाभाईचाचाताऊ,ससुर या पति होगा…….

 

विश्व पुस्तक मेला में आप पुस्तक प्रेमियों का इन्तजार रहेगा....!




 

Comments

  1. अति प्रेरणादायक परिचय नयी किताब का, कविता का और स्त्री शक्ति का

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