वृक्ष और चिड़िया संवाद
चित्र: गूगल से साभार |
चिड़िया: "सखे! आपको कितने नामों से पुकारा जाता है ?
वृक्ष: तरु, पादप, पेड़, वृक्ष, द्रुम आदि नामों से लोग मुझे पुकारते हैं?
चिड़िया: आपको सबसे ज्यादा कौन-सा मौसम पसंद है?
वृक्ष: पतझड़ और बसंत!
चिड़िया: अरे! दो ही क्यों ?
वृक्ष: क्योंकि पतझड़ मेरे पुराने पत्तों को शरीर से हटा देता है और बसंत नए-नए पत्तों और खुशबूदार फूलों से मुझे ऊपर से नीचे तक पत्तों से लाद देता है।
चिड़िया: बसंत होता क्या है ?
वृक्ष: बसंत! जीवन की उत्फुल्लता है। प्रेम और सृजन का एक सुन्दर वातावरण है। इसी के आने से निराशा का अंत और खुशी का जन्म होता है। कितने भी पुराने,बूढ़े,छोटे या बड़े पादप क्यों न हों, बसंत उन्हें पत्तों और फूलों से भर देता है।
चिड़िया: क्या वन-उपवन में ही फूल खिलते हैं या जंगल में भी खुशहाली आती है?
वृक्ष: बसंत के मौसम में हर जगह और हर एक प्रकार के पेड़-पौधे और बेलों पर बहार आ जाती है।
चिड़िया: अरे वाह! पर आपसे जानना चाहती हूँ कि संसार में बसंत आता ही क्यों है?
वृक्ष: पृथ्वी की कुरूपता-रुग्णता हटाने के लिए। बसंत का मौसम सारे मौसमों में राजा कहलाता है। इसको ऋतुराज, अनंग, ऋतुपति आदि नामों से भी जाना जाता है। ये जब आकाश मार्ग से धरती पर उतरता है तो इसकी फूलों की पालकी में अनेक प्रकार के फूलों के रंगों वाली बोरियाँ लदी होती हैं।
चिड़िया: अच्छा, तो यह बताइए, आसमान से बसंत सबसे पहले कहाँ उतरता है?
वृक्ष: बसंत समस्त भूमंडल पर अपनी प्रेमपूरित नज़र डालता है। चूंकि हम वृक्ष धरती से उठे हुए होते हैं इसलिए हमें लगता है कि बसंत हमारी दुनिया में सबसे पहले प्रवेश करता है। फिर हम सब पवन का सहारा लेकर बसंत की खुशबू को मनुष्यों की दुनिया में भेज देते हैं। चारों ओर मादक सुगंध फ़ैल जाती हैं। सभी अपने जीवन के सौभाग्य को महसूस कर झूम उठते हैं।
चिड़िया: पतझड़ द्वारा किए गये रूखे-सूखे वृक्ष बंसत को बुरे नहीं लगते? मुझे तो बहुत बुरा लगता जब पतझड़ खर-खर-खर एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर दौड़ता है।
वृक्ष: आपकी ही बात नहीं, पतझड़ की शुष्कता सभी को उदासी से भर देती है लेकिन बसंत का आगमन पतझड़ के बाद ही होता है इसलिए सब मौन होकर रूखापन झेल लेते हैं। और अगर सच कहें तो उसमें बुरे लगने जैसी कोई बात है भी नहीं। ये तो प्रकृति देवी का बनाया गया नियम है, जिसे कोई भी तोड़ नहीं सकता। आगे-पीछे आना जाना ही संसार की नियति।
चिड़िया: आपकी जानकारी में कोई वृक्ष ऐसा है जो पतझड़ को अपने नजदीक फटकने नहीं देता है?
वृक्ष : हाँ, आम का वृक्ष हमेशा हरा-भरा रहता है, उसपर पतझड़ अपना प्रकोप नहीं दिखा पाता है।
चिड़िया : अरे वाह! अब थोड़ा अच्छा लगा। अब आप ये बताओ कि बसंत जब धरती पर रहता है तब वह खाता-पीता क्या है और कहाँ सोता है? मुझे जानने की बड़ी उत्सुकता हो रही है।
वृक्ष: चिड़िया रानी, आपने कितना अच्छा प्रश्न पूछा है। बसंत जब पृथ्वी पर रहता है तब वह पलाश की नरम डालियों पर लगे गद्देदार लाल फूलों पर सोता है। नदी, तालाब, नहर और झरनों में नहाकर धूप के कोमल अगौंछे से अपना बदन सुखाता है। महुआ के फूल-फल उसका भोजन हैं। अंगूर, आम और फूलों के रस को वह पीता है। वन प्रान्तों में अडिग खड़े पहाड़ के अंचल उसके खेलने के स्थान हैं। जब बसंत सुबह सैर पर निकलता है तो संसार की हर गली भाँति-भाँति की खुशबुओं से महक उठती है।
चित्र: गूगल से साभार |
चिड़िया: अच्छा, अब आप अपने जीवन के बारे में भी मुझे कुछ बताइए।
वृक्ष: मेरा जीवन खुली किताब की तरह है, जो चाहे पढ़ सकता है। हम सभी किसी भी जाति-प्रजाति के क्यों न हों, उत्साह से अपना जीवन जीते हैं। हमें कुदरत ने सिर्फ देना ही सिखाया है। इसलिए जब तक जिंदा रहता हूँ, ख़ुशी-ख़ुशी देता रहता हूँ। इससे ज्यादा और कुछ नहीं।
चिड़िया: हाँ, आपकी बात से सहमत हूँ। मेरा घर भी आपकी डालियों पर होता है। मेरे बच्चे आपकी छाँव में पलते-बढ़ते हैं। आप स्वाभाविक दानियों में से एक हैं। है न?
वृक्ष: हाँ! ऐसा कहा जाता है।
चिड़िया: अच्छा पेड़, आप इंसान को जानते हो ? उसके साथ आपका रिश्ता कैसा है?
वृक्ष: इंसान और मैं इस दुनिया में साथ-साथ आये या बाद में, नहीं पता; मगर इंसान का जीवन मेरे इर्दगिर्द घूमता रहता है। वह जन्म से लेकर जीवन के अंत तक मुझसे बनी वस्तुओं का उपयोग करता है। वृक्ष और इंसान एक दूसरे के पूरक खे जाते हैं, मैं कह सकता हूँ।
चिड़िया: मैंने तो इंसान को हाथ में कुल्हाड़ी लिए आपको काटते देखा है? गुस्सा नहीं आती आपको?
वृक्ष: पहले का इंसान कभी मेरे अंगों को अपने लालच में भरकर नहीं काटता था। तो गुस्सा का सवाल ही नहीं था, देना तो मेरा काम है। हाँ अब ज़रूर इंसान को मैंने परेशान देखा है। वह जंगलों को कटवा कर अपने लिए घर बनवाता जा रहा है फिर भी वह खुश नहीं रह पाता है। अपने परिवार के पादपों को जीवन से जूझते देखता हूँ तो बुरा भी बहुत लगता है। पर कुछ कह नहीं सकता।
चिड़िया: खैर, मुझे तो बहुत गुस्सा आती है। एक तो इंसान अपने घरों में जाल डालकर बैठ गया। बचा जंगल जिसमें उगे पेड़-पौधों के फल-फूलों से हम शाखाहारी जीव अपना काम चलाते हैं, उसे भी नष्ट करने पर तुला है?
वृक्ष: आप सही कह रही हो चिड़िया रानी! लालच करना सबसे बड़ा दुर्गुण है। इससे हर सम्भव बचना चाहिए।
चित्र: गूगल से साभार |
चिड़िया: आप से बात करते हुए मुझे बहुत अच्छा लगा। चलते-चलते बच्चों को कोई संदेश देना चाहेंगे?
वृक्ष: बच्चे मुझे बहुत प्रिय हैं। पहले वे लोग बाग़ में आकर मेरे आस-पास तरह-तरह के खेल खेलते थे। अपने बड़ों के साथ सैर पर आते थे। इन दिनों उनके हाथ में एक छोटा-सा यंत्र आ गया है। मनुष्य उसे मोबाइल कहता है। बच्चे लोग उसी से चिपके रहते हैं, जिसके कारण बचपन में ही उन्हें तमाम प्रकार की बीमारियाँ घेर लेती हैं। उनके लिए मैं बस इतना कहना चाहता हूँ— “प्यारे बच्चो! मनुष्य का जीवन बहुत मुश्किल से प्राप्त होता है। इसे इस तरह से मत गँवाओ। अपनी जीवनचर्या में संतुलन बनाना सीखो। खुद से प्यार करो, खूब प्रश्न करना सीखो और सद्भावना बाँटो। यह मोबाइल आपकी चिंतनशीलता को निगल जाएगा। जो आपके लिए अत्यधिक हानिकारक होगा।”
चिड़िया: अरे वाह! ये तो बहुत ज़रूरी बात आपने कह दी! मैं आपका संदेश ज़रूर बच्चों तक पहुँचा दूँगी! धन्यवाद
वृक्ष: मुझसे बात करने के लिए आपने वक्त निकला उसके लिए सादर आभार!
***
2023 बाल भारती के फरवरी अंक में प्रकाशित |
वाह! बच्चों और बड़ों दोनों के हित की बातें
ReplyDeleteअनीता जी, बहुत धन्यवाद
Deleteअति सुंदर संदेशयुक्त संवाद।
ReplyDeleteप्रकाशित होने के लिए बधाई स्वीकार करें।
सादर।
जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार ३ फरवरी २०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
स्वेता जी, आपका बहुत धन्यवाद
Deleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteजी, बहुत धन्यवाद
Deleteचिड़िया और वृक्ष का अनेक जानकारियों से भरा बढ़िया संवाद..
ReplyDeleteगिरजा जी, बहुत धन्यवाद
Deleteबहुत सुंदर रोचक और संदेशप्रद संवाद वृक्ष और चिड़िया के माध्यम से ।
ReplyDeleteसुधा जी , बहुत धन्यवाद
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