चिड़िया का कहना सुनो



"सदियों से चली आ रही परंपराओं में से बेजान परंपरा की एक सूखी पत्ती निकालकर फेंक सको, और अपनी पसंद की हरी पत्तीनुमा जाग्रत परंपरा जोड़ सको तो आओ, बुनें घोंसला अपने लिए।" चिड़िया ने कहा।

"किसी को भी लग सकता है कि मनुष्य घोंसले में रहता है। लेकिन नहीं, वह अपने हाथ से बनाए घोंसले में नहीं, अपितु अपने मन के द्वारा विचारों से बने घोंसने में नितांत अकेला रहता है। उस घोंसले को बनाते हुए वह कितना विचलित या तटस्थ रहा, उसके बोलने-बताने और आचार-विचार प्रकट करने से वह दिखता है। ईंटों के मकान से निकलकर आदमी कहीं छिप भी सकता है लेकिन विचारों में प्रकट होकर छिपना मुश्किल है।" चिड़िया आसमान की ओर देखकर बुदबुदाई।

"आओ, पुरानी घिस चुकी परंपराओं को पुनर्नवा कर नई परंपराएं गढ़ें।" चिड़िया का कहना, डाल ने सुना, सुना पेड़, फूल, फल, आकाश, सूरज और मौसम ने। चिड़िया की करनी और कथनी में समानता भी थी लेकिन मनुष्य विकास वाला खरगोश पकड़ने की जल्दी में दिखा।

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