शिक्षा कहती है .....

 जैसे-जैसे मैं बड़ी होती गयी स्त्री के कार्य क्षेत्र से अवगत मेरी माँ ने कराया। माँ का गहराई से मानना था कि स्त्री का दायरा समस्त भूखंड है और हर काम में उसकी भागीदारी निहित है। ऐसा कोई काम नहीं, जिसके लिए उन्होंने न अपने आप को सीखने से रोका और न ही मुझे ये बताया कि ये तुम्हारा काम नहीं और ये तुम्हारा ही काम है। वे परिधि का मान अपने प्राणों जितना रखते हुए सभी से यानी  कि चाहे स्त्री हो या पुरुष सभी से खुले मन से बात करती थीं। समानता से बात करते हुए खुद को संरक्षित किये रहना उनका सहज स्वभाव था, जो मेरे भीतर भी शायद बह आया है। वे हमेशा कहती थीं कि,"स्त्री को अपने शरीर के बाहर रहकर खुद को मनुष्य बनाए रखना होगा।" इस समझ के प्रति श्रद्धा भी उन्हीं की देन है। स्त्री आज़ादी में शिक्षा को वे बहुत बड़ा टूल मानती थीं।

 

चित्र को देखते हुए-


सही मायने में स्त्री की आज़ादी यहीं से शुरू होती है। जिस दिन स्त्री खड़िया पट्टी उठा लेती है, उस दिन से उसके मन के बाहर-भीतर उजाला होना शुरू हो जाता है। उसके आसपास एक ऐसा दर्पण अवतरित होता है जिसमें वह सभ्यता की परछाइयों को देखना शुरू कर देती है।

शिक्षा सिर्फ किताबी ज्ञान नहीं होता अपितु आध्यात्मिक, सामाजिक, ऐतिहासिक, सामयिक, भौगोलिक, व्यैयक्तिक और चारित्रिक समझ भी शिक्षा के अभिन्न अंग हैं। यहाँ चारित्रिक समझ से इकहरी सोच या दायरा नहीं। इस एक शब्द में मानवीय समस्त गुण निहित है।

अगर इतने सोपानों पर आपने शिक्षा का पल्लू थाम लिया तो शिक्षा कहती है,"जिस किसी में हौसला हो आ जाओ मेरी ओर मैं तुम्हें तुम्हारी मंजिल तक पहुँचा दूँगी।" फिर जिसने शिक्षा की हुंकार को सुना वह नामवर हो गया।

उक्त आयामों को साथ लेकर सबसे पहले शिक्षा मनुष्य के भीतर जमी रूढ़िवादिता का भंजन करती है। उसे वर्तमान में रहना सिखाती है, self realization जैसे बड़े विषय से रू-ब-रू करवाती है, सही बात पर अड़े रहना और गलत को माफी के साथ स्वीकारना और छोड़ना भी शिक्षा से ही संभव है।

शिक्षा जीव को निर्द्वंद्व बनाती है, जीव-जगत का आशय दृश्यों में समझाती है। परिधि का मान और ज्ञान शिक्षा में ही निहित है। खास तौर पर स्त्री उक्त मुद्दों से मुठभेड़ कर जब अपने को साबुत बचा ले जाती है तो वह अपनों का मार्गदर्शन करने के काबिल हो जाती है।

इस चित्र में स्त्री अकेली नतनतन किए नहीं बैठी बल्कि उसने अपने मन को जिसमें सौ क्या लाखों हाथियों का बल होता है, को सम्हाला हुआ है। नारी तू नारायणी ❤️

 

Comments

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(१०-१० -२०२२ ) को 'निर्माण हो रहा है मुश्किल '(चर्चा अंक-४५७७) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    ReplyDelete
  2. बहुत सुन्दर सार्थक लेख

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

एक नई शुरुआत

तू भी एक सितारा है

संवेदनशील मनुष्य के जीवन की अनंत पीड़ा का कोलाज