उत्सव मनाना हो
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चित्र : प्रयाग शुक्ल |
तो इंतज़ार मत करो वसंत आने का। वसंत का स्वभाव मादक है, कहीं बहक कर रास्ता भटक गया तो रह जाओगे ठंठन गोपाल बने, बरसात में पड़ी कच्ची मिट्टी की ढेली की तरह। या किसी दरख़्त पर लटके पतझड़ के उस अन्तिम पत्ते की तरह जो न टूटना चाहता है और न ही डाल पर रुकना।
किसी
यात्रा पर अकेले चले जाना। तुम्हारे मौन में उत्सव फूटेगा जिसे तुम सम्हाल नहीं
सकोगे। उसे बहने देना अपने सानिध्य में।
तुम
किसी पहाड़ी पर सूरज की पहली किरण के साथ चलना शुरू करना और चलते रहना जब तक कि थक
न जाओ उस हिरण के बच्चे की तरह जिसने दौड़ना अभी अभी सीखा है। जब थकान तुम्हें
घेरने लगे तो किसी पेड़ की जड़ की टेक लेकर बैठ जाना। तुम्हें वहीं किसी छाया के
चकत्ते में उत्सव पड़ा मिल जाएगा।
तुम
क्या सोचते हो दिवाली उत्सव का नाम है? नहीं, दीवाली कमर तोड़ सफाइयों से गुजरकर बरसाती सीलन
मिटाने की एक अमर गाथा है।
सच
कहूं तो उत्सव बाहर नहीं, तुम्हारे भीतर
रहता है। इधर उधर मत टटोलो उसे, खो गया तो
ढूंढें नहीं मिलेगा। उत्सव के रंग-ढंग अनोखे हैं। तुम जब अपने कीमती दिन को खोकर
मुंह तकिया में दबोच कर निस्सहाय सो जाते हो,
तुम्हें
ज्ञात भी नहीं होता कि तुम्हारी देह रात भर घोर उत्सव में होती है। तुम्हारी
सांसें विरल लय में चल कर धड़कनों को आवाज़ देती हैं और दिल होले होले गिरता उठता
नाच उठता है।
जैसे
ही तुम गहरी नींद में भूलने लगते हो अपना आकार,
प्रकार, रंग, कद काठी और
धर्म, उत्सव तुम्हें वरण कर लेता है। उत्सव
रात के सन्नाटे में तुम्हारे घर रोज़ आता है।
पिंजरे
की कील खोलकर क्या सोचते हो? पंछी उड़
जायेगा? उड़ने के लिए उसे जगाना होगा। हां, पिंजरे के नज़दीक ज्यादा मत आया जाया करो, कैद होने के ख़तरे पूछ कर नहीं आते।
सीढियां
चढ़ते हुए ये भरम कभी मत पालना कि वे तुम्हें लक्ष्य तक पहुंचा देंगी। सीढियां तो
दीवारों से बगावत करने के लिए रची गई हैं। चढ़ना उतना सब अपनी कुव्वत का पसारा है।
जिस
तरह आराम कुर्सियों को बैठक में सजाए रहते हो,
बैठ
नहीं पाते आराम से। तुम्हारी आराम कुर्सियों पर आलथी पालथी मारकर तुमसे ज्यादा धूल
बैठती है। तुम तो बस "आराम" शब्द पुकार कर ही हरे हो जाते हो।
सुनो
अब कागौर के लिए कौए नहीं मिलेंगे। गलती उनकी नहीं मुंडेरें हमने उदासी हैं। चाहो
तो काले कपड़े टांग लो किसी खूंटी पर तुम्हें देखते देखते शायद वे भी सीख जाएं कौए
की तरह उड़ना लेकिन याद रखना, उड़ना उत्सव
नहीं होता।
फिर
उत्सव होता क्या है? किसी कलाकार के चित्र में खोकर पूछना
पड़ेगा उत्सव का पता.
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