अंश और अंशी का द्वंद्व
उसके यानी कि ईश्वर के द्वारे बड़े संकरे होते हैं। कोई-कोई ही इनके बीच से निकल कर इनकी सुधबुध कर पाता है। संसार में अच्छे बुरे का एहसास तटस्थ भाव से कर पाना बिल्कुल साधारण बात नहीं। इसके के रचयिता की जीवोद्धारक विधि बेहद अजीबोगरीब है। वह आपके नहीं, अपने ढंग से कार्य करता है।
जब हमें बराबर ये लगता और खटकता रहता है कि हमारे साथ जो हो रहा है, वह बहुत बुरा हो रहा है, लोग चालें चल रहे हैं। उस समय जगतनियंता आपके दोषों और अहम को परमार्जित कर चालन लगाकर तुम्हें निखार कर आदमी बना रहा होता है। क्योंकि आप जिस जगह को सर्वोत्तम मानकर टिकना चाहते हो, उस अदृश्य को मालूम होता है, वह स्थान आपके अनुकूल नहीं है। तभी तो वह इंसानी मुहरों को आपके खिलाफ भड़का देता है। और हम ठगे से देखते रह जाते हैं।
यहाँ पहुँचकर अंश और अंशी का जो द्वंद्व पैदा होता है, वह जान लेवा, कठिनतम कहलाता है। आपकी अपेक्षाओं के पर कतर कर वह आपको ऐसे स्थान पर पहुँचा देता है, जहाँ आपके स्वाभिमान को सम्मान ही नहीं मिलता बल्कि आप सुकून भी महसूस करने लगते हैं।
छूटने और पहुँचने के बीच के वक्त को काटने-छाँटने में हमें तीनों जन्म याद आ जाते हैं, दरअसल उसी को संघर्ष कहते हैं।
खैर, जब आप कुशलता से सुस्थान पहुँच जाएँ तब आप अगर कुछ किसी को देना चाहें तो ऊपर वाले के उपकार के प्रति धन्यवाद दे सकते हैं। लेकिन अपने साथ घटित सुख-दुःख की सच्ची बात का भान रह पाना भी कठिन है। फिर भी आपको यदि याद बनी रहे तो समझिए भले आपसे कोई खुश रहे न रहे, ईश्वर बहुत प्रसन्न रहता है।
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जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(०१-०८ -२०२२ ) को 'अंश और अंशी का द्वंद्व'(चर्चा अंक--४५०८ ) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत सुंदर
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