सियोल_से_सरयू

 

आज आवरण कथा वाचन में डॉ. सुनीता जी की सद्य प्रकाशित पुस्तक #सियोल_से_सरयू# का आवरण मेरे सामने है।

खुलापन और तरलता संसार में दो ऐसे तत्व हैं जो हमारा ध्यान आकर्षित किए बगैर नहीं छोड़ते। सुनीता जी की कथा कृति के आवरण पर मुझे उक्त दोनों तत्व भरपूर दिख रहे हैं। एक तरफ खुला आसमान है तो दूसरी ओर जल से समृद्ध किल्लोल करती हुई नदी दिख रही है। मानवीय सभ्यता फलने-फूलने में यही दो तत्व सर्वाधिक आवश्यक रहे होंगे ज्ञान पिपासुओं के लिए। कौन नहीं जानता होगा कि नदियों के किनारों पर मानवीय जीवन ने सभ्य गति पकड़ी। वैसे भी खुलापन विचारों का हो या स्थान का हमें अपनी ओर आकर्षित कर निबद्ध कर ही लेता है।

"सियोल से सरयू" कृति के आवरण को देखते हुए भी एक शांत खिंचाव महसूस हो रहा है। शांत मन रंगों का मेलजोल आँखों के साथ मन को सुकून दे रहे हैं। अर्थ के मामले में खुलापन रिक्तता बिल्कुल नहीं होता। खुलेपन का तात्पर्य मुक्तता-बंधनहीन होना है। हम जब प्रेमी या मित्र की ख़ोज करते हैं तो उसके हृदय का खुलापन और संवेदना की तरलता को पहले टटोलते हैं और जब घर बनाने या खोजने के लिए निकलते हैं तो लिविंग एरिया (बैठकी) का खुलापन चाहते हैं। आवरण पर निस्सीम गगन की छटा मनोहारी दिख रही है। लेखिका ने जो शीर्षक चुना है उसमें एक शब्द से तो हम परिचित थे लेकिन दूसरे "सियोल" शब्द से परीचित नहीं थे इसलिए गूगल बाबा की मदद लेनी अनिवार्य हो गयी।

खैर, आवरण चित्र को दो हिस्सों में बाँटा गया है और दो देशों के बीच में एक स्त्री को दर्शाया गया है। धरती आसमान के बीच चाहे उसे प्रकृति समझो या सृष्टि को गतिमान रखने के मद्दे नज़र स्त्री। दोनों का कार्य संसार को सौन्दर्य दान करना ही है। हम जब ध्यान से आवरण को देखते हैं तो जिस ओर सरयू है उस ओर ज़मीन सूखी है किंतु सजर यानी कि पेड़ हरी पत्तियों से लहक रहा है और जिधर साउथ कोरिया से संबंधित सियोल है उस ओर हरेपन को जीवित रखने वाला विशेष तत्व जल से भरी नदी बहती नज़र ज़रूर आ रही है लेकिन उधर का सजर सूखा और उजाड़ खड़ा दिख रहा है।

चित्रकार जानता है कि किसी देश की स्थानीय परंपराओं से रू- ब -रू करवाने के लिए सबसे अच्छा साधन वृक्ष होते हैं। जहाँ पेड़ों पर हरियाली होगी, वहाँ खगकुल भी समृद्ध होगा और जहाँ की प्रकृति समृद्ध होगी वहाँ का लोक जीवन भी खुशहाल होगा क्योंकि इंसानों के सबसे नजदीकी रिश्तेदार वृक्ष ही होते हैं। आवरण चित्र में घरों की छतों और खिड़कियों आदि में समता दिखलाई गई है। वहीं धार्मिक स्थानों के गुम्बद दिखाकर सरयू की ओर राजनैतिक उठापटक को भी बिना कहे चुपके से दर्शा दिया गया है। भले सरयू की ओर नदी बहती नहीं दिख रही है लेकिन ज़मीन में जल भरपूर है, उसकी गवाही पेड़ दे रहा है। सरयू की ओर क्षितिज पर तपता हुआ सूरज आसमान पर टांका गया है। जिसकी बाहरी परिधि पीले रंग की है और उसी रंग से मंदिर की पिछली दीवार को एकीकृत किया गया है। इस माध्यम से दर्शाया गया है कि सूर्य शाश्वत सत्य है। उसी प्रकार भारतीय संस्कृति अक्षुण है लेकिन एक सवाल सिर उठाता है। क्या तपिश जीव-जगत को त्वरा प्रदान करती है? इस नाते सूरज सिर्फ सत्य ही नहीं हुआ जगत नियंता भी हुआ।

वहीं सियोल की ओर देखने पर एक टावर जो बहुत ऊँचा और अकेला है दिखाई दे रहा है। चाहे उसको वहाँ का धार्मिक स्थान मानो और चाहे ऊँचाई पर रहने वाले इंसानी घरौदों में सन्नाटे का साम्राज्य। ऐसा लगता है कि उस चित्र के माध्यम से सियोल के एकाकी जीवनशैली की झलक प्रस्तुत की गई है। कहने को सियोल में तरलता प्रदान करने वाली नदी लहरा रही है। शांति इतनी कि पेड़ पर एक पत्ता भी खड़कने को नहीं है लेकिन क्या बिना आत्मिक ज्ञान के व्यक्ति अपने एकांत को सूक्ष्म सौन्दर्य बनाकर उभार सकता है या डसने वाला सन्नाटा और सर्द स्तब्धता वहाँ के जटिल जीवन की कहानी है। दूर से देखने पर लगता है कि ऐसा रंगीन सन्नाटा जो भीतर से प्रत्येक घटक को खोखला बनाने की दम रखता है। जिस तरह प्रकृति आसमान और धरती के मध्य रहकर एकता का भाव प्रकट करती है उसी प्रकार एक स्त्री सदैव ही दो स्थानों को अपनी समझ से पाटती है। तभी तो कवर पर एक स्त्री की छवि को बेहद शांत और तनाव मुक्त दिखलाया गया है। स्त्री के परिधानों को यदि दृष्टिगत रखा जाए तो उनसे भी भी दो देशों की भिन्नता को स्पष्ट देखा जा सकता है।



चूंकि कृति मेरे पास आ चुकी है तो मैंने इसको पढ़ना भी शुरू किया है। पहली कहानी शीर्षक वाली ही पढ़ी। कथा लेखन की विधि जैसा कि लेखिका ने बताया कि "लीप शैली" है। उसको ध्यान में रखते हुए एक बात ये पढ़ते हुए महसूस हुई की रिपोतार्ज की तरह कहानी आगे बढ़ती है। साथ में कहानी में जो उपमाएँ, शब्द भंगिमाएं, लोकोक्ति, मुहावरे और कथन हैं उनको पढ़ते हुए बहुत कुछ नया जानने-समझने को मिलता है।

कोरियाई संस्कृति में पली बढ़ी स्त्री अपने दर्शनपूर्ण संवादों से कैसे भारतीय परंपराओं में पगी स्त्री को सोचने पर मजबूर कर देती है। पढ़ते हुए अद्भुत आनंद आया। कहानियों में आए किरदारों के नाम अलग और मौलिकता लिए हुए हैं इसलिए भी कहानियों में ताज़गी का संचार होता-सा नज़र आ रहा है।

इसी के साथ लेखिका को अनेक शुभकामनाएं और बधाई!

अस्तु!

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लेखिका : डॉ. सुनीता 

समीक्षक : कल्पना मनोरमा 

कृति : सियोल से सरयू 

प्रकाशक : वनिका पब्लिकेशन 

मूल्य : 230/-

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