"बाँस भर टोकरी" पर उषा की प्रतिक्रिया
कहते हैं कविता एक कवि की भावनाओं का उद्घाटन है। कविता कवि की संवेदनाओं का प्रवाह है। जिसके कारण वह अपने भावों को व्यक्त कर पाता है। ऐसा ही काव्य संकलन 'कल्पना मनोरमा' जी की कविताएं का भी है। जिन्होंने बहुत ही शांत भाव से अपनी कविताओं को व्यक्त किया है। 'बांस भर टोकरी' की कविताओं से गुजरते हुए ऐसा शांत भाव का माहौल पैदा हो जाता है, जैसे कोई प्रेमी अपने मनोरम प्रेम में डूबे हुए अपनी प्रेमिका की प्रतीक्षा की राह देख रहा हो। कल्पना मनोरमा जी ने इस काव्य संग्रह का नाम बिल्कुल सटीक दिया है। 'बांस भर टोकरी' जो मानवीयता के विराट दर्शन की ओर इशारा करती है ।
यदि हम यहाँ
टोकरी को स्त्री और बांस को ईश्वरीय तत्व का प्रतीक मान लेते हैं, तो कवयित्री का कहना बिल्कुल सही ठहरता है। जिस विराटता का अंश पुरुष है
तो स्त्री भी उसी का अभिन्न अंग होती है। फिर समाज के प्रति इतना भेदभाव क्यों?
'मनोरमा' जी ने अपनी कविताओं में एक ऐसी औरत
की खोज की है जिसकी चेतना स्वतंत्रता की मांग करती है। दरसल आज औरतों के हिस्से
में जो कमोबेश आजादी आई है। वह अधूरी है। स्त्री या पुरुष के लिए उचित वातावरण में
रहते हुए भी अपने स्वत्व की निर्भरता का सहारा आज भी स्त्री और पुरुष साथ रहते हुए
उचित वातावरण बनाने में पूरी तरह सक्षम नहीं हुए हैं। यदि शिक्षा और जागरूकता अपने
वर्चस्ववादी मनोवृति में काफी परिवर्तन किया है। फिर भी स्त्री अपने स्त्व की
निर्भरता का सहारा खोज रही है। लोग औरतों को करुणा और दया का पात्र समझते हैं जबकि
उसे पारस्परिक सामंजस्य और सहयोग की आवश्यकता होती है।
मनोरमा जी ने
बड़ी गहराई और बौद्धिकता के साथ अपनी देश की कामकाजी औरतें और उनके हाथों की
निर्मिति आधार देने वाली उनके खुरदरे यथार्थ को महसूस किया और उस पर लिखा है-
'भोर होने से पहले ही
समेट लेती है
स्वयं को
कामकाजी औरतें
कुछ बिखेर देती
है संभालकर
कुछ उठा लेती है
करीने से
अपने पर्स में'...
एक कामकाजी औरत
किस तरह से अपने समय से सामाजिकता को बैठाकर जीवन की हर छोटी मोटी जरूरतों को
बटोरने में लगी रहती है। उसकी संवेदना सहज ही उसे तमाम वंचित लोगों से जोड़ती है।
इसी प्रकार कवयित्रि ने 'चीटियां कतारों में' कविता के
माध्यम से आदमी-आदमी के बीच सहयोग के भाव का वर्णन
करते हुए लिखा
है।
'चीटियां कतारों में
थीं
वे सूंघ रही थी
माथा एक दूसरे का
और कहती जा रही
थी एक ही बात
सामंजस्य बनाए
रखना
दौर कैसा भी हो
चला जाएगा
साथ निभाए चलना
कतार के आगे आगे
चल रही रानी चींटी'
इस कविता के
माध्यम से कवयित्री ने मानवीय जीवन का यथार्थ प्रस्तुत करने की चेष्टा की है।
इस कविता संग्रह
की सबसे सटीक कविता जो संग्रह के नाम का माध्यम भी है। 'बांस
भर टोकरी' इस कविता के माध्यम से कवयित्री ने जीवन का राग,विराट तत्व, शुभ अशुभ, गृहस्थ
जीवन, श्रम की महत्ता, जीवन की समूची
और जीवन की सूची सुहाग का प्रतीक बांस को माना है । कवयित्री कहती है
'बांस की बांसुरी हो या
टोकरी
जब जब जाती है
खरीदी
तब तक बज उठते
हैं मन के तार
एक और से दूसरी
ओर तक'…
बिल्कुल सही
लिखा है कि बांस से बनी हुई बांसुरी की मधुर ध्वनि मन के तार को भी हिलोर देती
है।जिस प्रकार बांसुरी प्रेमी के होठों पर जब फूँक बन जाती है, तो उसी प्रकार राधिका सब कुछ भूल कर अपने प्रिय के पास पहुंच जाती है और
अपने मन के सारे द्वेष जैस भूल जाती है। बहुत ही सटीक नाम दिया है लेखिका ने 'बांस भर टोकरी'
अंततः 'कल्पना
मनोरमा' जी की कविताओं को पढ़कर यही महसूस होता है, कि जीवन में ये कविताएं एक अनुभव का विश्लेषण करती है। जो समाज और परिवेश
के परिवर्तनों को व्यक्त करती हुई चलती है। लेखिका ने अस्मिता मूलक विमर्शों को भी
अपनी कविताओं में धार दिया है। उसकी ये विशेषता मात्र कथ्य नहीं बल्कि एक चुनौती
के रूप में भी प्रस्तुत होती है। यह विवेक द्वारा कविता की ना खत्म होने वाली
जिजीविषा एवं सच की विश्लेषणता को व्यक्त करती है।
अंतत: 'बांस भर टोकरी' की कुछ कविताओं ने सचमुच मेरे हृदय में एक जगह बनाई है। जो बिल्कुल सौम्य और सादगीभाव से लिखी गई है। ये कविताएं कभी ना खत्म होने वाली प्यास को बढ़ावा देती हुई प्रतीत होती है। मैं, मैम को पुनः हार्दिक बधाई.
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टिप्पणीकार उषा यादव |
मन को छू जाने वाली कविताओं के लिए आपको हार्दिक बधाई मैंम!🙏
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