बाँस की बेटी

 


क्या बाँस की बेटी से आप मिले हैं? "बाँस भर टोकरी" से यदि बाँस की बात कही जाए तो वह अपनी कठोरता और पोलापन अपनी बेटियों को कभी नहीं सौंपता। बाँस भी हम मनुष्यों की भांति अपनी बेटी को सदैव सहनशीलता और भावुकता से भरे रहना सिखाता है। तभी तो बाँस की बेटियाँ, टोकरियाँ भी अपनी अपरमित उदारता से संसार का हर दिया हुआ चुपचाप अंतर में सहेज लेती हैं। 

बाँस की टोकरियों में आप चाहें तो फूल सजाएँ या सब्जी-भाजी, फल, रद्दी पेपर, विदाई के माठ, मिठाई और पुए भरें या फिर कूड़े-कचरे के लिए उन्हें चुन लें। वे मौन रूप से अपने आकार भर सब कुछ स्वीकार कर लेती हैं। वैसे आप देख सकते हो जब टोकरियाँ खाली होती हैं तब उनमें आसमान भरा होता है। पिता बाँस जब अपनी पुत्री के औदार्य को निहारता है तो निहाल हुए बिना नहीं बच पता है। बेटी की उदारता पर बाँस सोच-सोचकर हैरान होता रहता है कि उसकी बेटी उसका नाम कितनी सुंदरता से हर कोने रोशन कर रही है। जब बाँस टोकरियों को फूलों से सजा हुआ देखता है तब तो उसका मन हरा हो लहक उठता है। और इस तरह पिता संतति में अपने पोले अस्तित्व को पल दो पल ही सही भूल जाता है। बेटियों के सौंदर्य पर गौरवांवित बांस जब बेटी टोकरी का दुर्पयोग होते देखता है तो उसकी आत्मा दग्ध हो उठती है। और इस दशा में सिर्फ पिता ही नहीं अपितु बाँस की टोकरियाँ भी मानवीय अराजकता के प्रति अपना मौन विद्रोह ठानकर अचानक जीना छोड़ देती हैं कि देखने वाले कह उठते हैं। "टोकरी क्या! अब तो इसमें बाँस ही बचा है।" 

इस तरह बाँस की टोकरी अपने आकार को गलाकर खुद को पुन: बाँस बना लेती हैं। ऐसा नहीं बाँस सिर्फ अपनी बेटियों के लिए दयालु है। नहीं, वह तो हम इन्सानों की बेटियों का भी सहयोगी है। इस दुनिया में स्त्री का साथ कोई निभाए या ना निभाए लेकिन बांस स्त्री का साथ डोली से लेकर अर्थी तक निभाता है। क्वारी लडकियाँ ब्यहाने के उपरान्त अपने वर के साथ उसके परिवार को अपनाने ससुराल जाती हैं तो उन्हें खाली हाथ नहीं भेजा जाता। माँ दायजे में फल,फूल मिठाइयाँ भी भेजती है। उसी के रख रखाव में एक माँ छोटी-सी लाल गाँठ बाँधकर टोकरियों की तली में रखती है। और ऐसा करते हुए माँ टोकरियों में-

सागर भर मर्यादा धरती भर धैर्य उपवन भर मुस्कान आकाश भर मौन पतिंगे भर समर्पण छिपाकर भेज देती है, अपनी संस्कृति को चुपचाप दूसरों के घर बाँस मानव-पुत्रियों के पोले अस्तित्व पर रास्ते भर सिसकता है। लेकिन इंसानी पिता की बेटियों का हाल देखकर भी वह कुछ बदलाव नहीं कर पाता। और इस तरह इन्सान की बेटियाँ कितना भी क्यों न खुद को गला डालें किंतु वे मनुष्य में पुन: अपनी गिनती कभी नहीं करवा पाती हैं। 

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आवरण चित्र: निर्देश निधी जी के सौजन्य से! कृति चित्र मीनाधर पाठक जी के सौजन्य से! संग्रह प्राप्त करने के लिए अमेज़न का लिंक https://www.amazon.in/dp/B09X5DKYRT?ref=myi_title_dp आप चाहें तो निम्नन प्रकाशक के नम्बर पर संपर्क कर भी पुस्तक मंगा सकते हैं। 09837244343

 

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