क्या प्रतीक्षा का रंग नारंगी होता है....?

 


#आवरण_कथा_वाचन में समकालीन लेखिका Rashmi Ravija की कृति #स्टिल_वेटिंग_फॉर_यू" का आवरण मेरे सामने है। यहाँ में आपको बता दूँ इस कथा में सब कुछ अनुमानत: से उद्धृत किया जा रहा है। कहने का मतलब ये है कि लेखक के द्वारा चयनित शीर्षक और आवरण की भाव भंगिमा को सदृश्य रखकर कृति कलेवर की यात्रा करना है। कथा रस का स्वाद तभी चखा जाएगा जब पुस्तक पढ़ी जाएगी।

खैर, इंतज़ार शब्द अपनी व्युत्पत्ति में बहुत कुछ छिपा कर रखता है। इंतज़ार एक तरह का धैर्य का संधाना हुआ तीर होता है। जिसको वह तीर लगता है वही इसकी गुणवत्ता को ज्यादा समझ सकता है। यहां अंग्रेज़ी के शब्द "स्टिल" ने बात को थोड़ा सा घुमा दिया है। मतलब यहाँ प्रतीक्षा में चुपके से "आशा" भी आ जुड़ी है। हिंदी में कहें तो "तुम्हारे लिए फिर भी इंतज़ार है" मतलब किसी के जीवन में एक घटना घट जाती है और अपना सफ़र तय करते हुए विलुप्त भी हो जाती है लेकिन खत्म होने के बाद भी कुछ ऐसा उसमें अद्भुत था जो कि व्यक्ति को प्रतीक्षा के मोड में डाल देता है।

जिस प्रकार जन्म लेना एक घटना है उसी प्रकार मरना उससे भी बड़ी अभीष्ट घटना है। कहने का तात्पर्य ये है कि जीवन और मृत्यु के मध्य जो भी खेला रचा जाता है, उसमें भाषा व्याकरण के साथ मिलकर क्रिया प्रतिक्रिया करती है। कोई मिलता है तो कोई बिछड़ता है। किसी का इंतज़ार खत्म होता है तो किसी के हिस्से कभी खत्म न होने वाला इंतज़ार आ जाता है। "मिलना बिछड़ना" तमाम क्रिया शब्दों के मध्य विशेष अर्थ रखते हैं। इन दो शब्दों की परिधि में सुख दुःख के अकूत भंडार हैं। ये क्रिया शब्द अपने आप में अपार सुख दुःख का राग लिए हुए निरंतर संसार में गति करते रहते हैं।

व्यक्ति प्रतीक्षा के लिए कभी उपकृत होता है तो कभी कुछ शेष रह जाने के कारण अतृप्त होकर प्रतिक्षारत बना रहता है। कोई इन क्षणों में धैर्य से काम लेता है तो कोई अधैर्य को प्राप्त होकर अवसाद के घेरे में आ जाता है। इस आवरण को देखकर लगता है किसी व्यक्ति के जीवन में कोई आया है और साथ रहते हुए अचानक चला गया है। जाने वाला बहुत प्यारा था इसलिए जाने वाले के साथ व्यक्ति विशेष का जुड़ाव बेहद मानीदार रहा होगा उसी के प्रति अपनी कहानी खत्म होने के बाद भी व्यक्ति को उस तत्व की प्रतीक्षा है जो उसे पुनः सुखानुभूति से आर्द्र बना देगा। ये बात मुझे शीर्षक ने समझाई। आप ध्यान से देखेंगे तो आवरण पर व्यक्ति के बगल में एक पेड़ का ठूंठ भी है जो नयी कोपलों के आने की प्रतीक्षा में है।किसी के आगमन की प्रतीक्षा सुखकारी अनुभव होता है लेकिन जाने वाले के पीछे की जाने वाले की प्रतीक्षा कष्टप्रद और ऊब पैदा करती है  

खैर, अब अगर आवरण के रंगों और चित्रों की जुगलबंदी से कृति के कलेवर की बात कहें तो मुझे लगता है, की जीवन के आँगन में कुछ आह्लादकारी प्राप्ति के लिए जो सफरनामा आदमी खुद गढ़ता है उसकी अभिव्यंजनाएं इस कृति में पाठक को पढ़ने को मिलेगीं। एक उदाहरण से अगर हम समझना चाहे तो जिस प्रकार दिन के दोनों सिरे नारंगी रंग से सने होते हैं। सोचा जाए तो दिन के दोनों ओर शांति, उत्सव, वैराग्य और मोहभंग का दोलन निरंतर संसार में एक उत्सवी थरथराहट भरता है। लेकिन ये थरथराहट समानुपात में सभी को हासिल हो ऐसा कदापि नहीं होता। इस जगह जीव के कर्म आगे आ जाते है। समय की ड्योढ़ी पर हम सब मनरेगा के रोजनदार मजदूर ही तो हैं।

आपने देखा होगा दिन का जन्म लाल रंग के रेशम में होता है। अंबर अपना नारंगी परचम लहराकर लहराकर जगत को कम, समय को ज्यादा बता रहा होता है कि लो सम्हालो इस नवजात "वार" को और करवालो अपनी सारी मन्नतें पूरी। समय के इशारे पर सूरज दिन को अपने कांधे पर लिए लिए आकाशीय परिधि को नापता है और जो कुछ अप्राप्त रह जाता है, उसका इंतज़ार वह संध्या के आंगन में बैठकर करने लगता है। संध्या का शामियाना भी नारंगी होता है।

क्या प्रतीक्षा का रंग नारंगी होता है? हाँ, क्योंकि लाल रंग प्रेम का है और प्रेम समय के आरपार होता है। उसे न किसी की प्रतीक्षा होती है न बिरह। अब यदि पीले रंग की बात कहें तो वह साधुता और धैर्य का प्रतीक है लेकिन जब यही दोनों रंगों को मिला दिया जाता है तो एक नये रंग की उत्पत्ति होती है जिसे हम नारंगी रंग कहते हैं। जब हम किसी प्रिय-प्रिय घटकों के लिए प्रतिक्षातुर होते हैं तो हमारा घटाकाश नारंगी या स्याह ही होता होगा। इस कृति में वह सब मिलेगा जो आपको भावुक बनाने में सक्षम होगा। प्रतीक्षा के नये आयाम खोलेगा

अस्ताचल को जाता हुआ सूरज अपने आप में पृथ्वी से उजाला दूर होने का पर्याय है। उजाला का अर्थ प्रेम,तृप्ति, हँसी, विचारों का आना जाना और उत्सव की उमंग का हृदय में प्राकट्य है। आवरण के मध्य बैठा पुरुष उसी की प्रतीक्षा में है जो उसके पास कुछ रेशमी सा था उसे पुनः प्राप्त हो। जैसे वह जाते हुए सूर्य से कह रहा कि तुम जब तक हमारी जीवन रूपी पुस्तक में बुकमार्क की तरह बने रहते हो तब तक हमारे पास सब कुछ सुनहरा होता है। अब देखो ना तुम जा रहे हो तो कालिमा हमारे इर्दगिर्द उगने लगी है। कालिमा का अर्थ दुःख, परेशानी, निराशा, स्वयं से बिलगता आदि के रूप में ले सकते है। लेकिन काली सघन रात का सफ़र भी हम 'दिन समय से निकल आएगा' की प्रतीक्षा करते हुए चुपचाप तय कर लेते हैं। जाते हुए दिन को देखते हुए भी हम "स्टिल वेटिंग फॉर यू" ही कहते हैं। दिन का रूप भले व्यक्ति विशेष के लिए कैसा भी रहा हो। अस्तु!

लेखिका को अनेक शुभकामनाएं और बधाई नई कृति के आगमन पर...!!

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