रिचुय्ल

निक्कू का बचपन वैसा ही था जैसा कि सभी बच्चों का होता है। भाई के साथ मौज-मस्ती, माँ की लोरी के साथ दूध-भात-रोटी और दोस्तों के साथ खेलना। लेकिन उसका दिमाग़ तेज़ था। इस बात का अंदाजा तब लगया गया जब निक्कू खिलौनों को छोड़ पेन-पेपर की ओर आकर्षित हो गया था जिस उम्र में बच्चे घोड़ा, हाथी, बंदूक और चोर-सिपाही वाले खेल खेलते हैं, निक्कू बेढंगे ही सही कागज़ों, दीवारों व फर्श पर चित्र उकेरने लगा था। भाई की नोटबुक पर पेन्सिल चलाना पहले तो शैतानी में गिना गया लेकिन प्रयोग के तौर पर उसकी माँ निक्कू को पेपर-पेन्सिल पकड़ाने लगी थी। तिरछी-सीधी रेखाएँ या उलझे हुए गोले बनाने में निक्कू खूब किलकता। उसके इस खेल पर मोहित उसकी माँ को लगने लगा कि बड़ा होकर निक्कू ज़रूर चित्रकार ही बनेगा। उसका एक कारण ये भी था, निक्कू रेखाओं को एक दूसरे के साथ इस तरह जोड़ता कि देखने वाले को पेपर पर किसी न किसी चित्र की शक्ल उभरी हुई दिखती। 

जब निक्कू थोड़ा बड़ा हुआ तो एक दिन उसका रेखा-स्वांग जलपरी की आकृति लेकर पेपर पर उभरा। माँ ने रबड़ से थोड़ा सुधार दिया! फिर तो निक्कू के पिता भी उस चित्र को जलपरी कहने लगे। अपने इर्दगिर्द ख़ुशी भरे चेहरों को देखकर निक्कू ने अंजाने ही एक नया सबककुछ अद्भुत रचकर तारीफ़ पानासीख लिया था। 

इसी तरह से निक्कू जब तीन साल का हुआ तो उसके पापा छोटी-बड़ी कई कारें ले आये। खिलौने देखकर जहाँ सभी बच्चे सम्हलकर खेलते हैं वहीं निक्कू अपनी कारों की रेस लगवाता और कम समय में ही उन्हें बेरंग-पुराना बना डालता। पूछने पर बोलता कि कार को दौड़ाने में उसे जो मज़ा आता है। उसके लिए  रफ़्तार का खेल अद्भुत बन गया था निक्कू की माँ को ये बात बिल्कुल अच्छी नहीं लगती। उसका मानना था कि खिलौने से खेलना जितना ज़रूरी है उससे कहीं ज्यादा उन्हें सहेजना भी आवश्यक है। रफ़्तार में आनन्द लेने वाला निक्कू कुछ नहीं समझता। फिर भी उसकी माँ इस आशा के साथ कि कभी न कभी बच्चा सुन ही लेगाकहती रहती,”निक्कू वस्तुओं के रख-रखाव से ही व्यक्ति अपने जीवन को व्यवस्थित करना सीखता है तुझे भी ये सीखना होगा।माँ की बातें अनसुनी कर वह कारों की रेस में आने वाले मज़े की बातें उसे बताने लगता। माँ अपनी बातें भूलकर उसकी लुभावनी बातों में फँसकर मुस्कुराने लगती और इस तरह निक्कू का काम बन जाता।

अंडमान निकोबार में यशवर्धन 

खेलते-कूदते निक्कू अब इतना बड़ा हो गया था कि उसे स्कूल भेजने की बातें अक्सर होने लगी थीं। उसी दौरान प्राथमिक कक्षा के लिए उपयोगी पुस्तकें भी मँगवाई गयीं। माँ के साथ मिलकर उसने खूब मन लगाकर एडमिशन की तैयारी की जब एल के जी में दाखिले के लिए स्कूल गया तो ग्रेट मिल्टन अकादमी विद्यालय के प्रिंसिपल ने उसका एडमिशन यू.के.जी. में, ये कहते हुए करवा दिया कि बच्चे की कद-काठी और ज्ञान, ऊँची कक्षा के लिए समुचित पर्याप्त है। फिर क्या था! दो चॉकलेट लेकर निक्कू बाबू ख़ुशी-ख़ुशी घर लौट आये। शाम को माँ उसे टाउन-मार्केट ले गयी। जिस चीज़ को निक्कू पसंद कर लेता माँ सहर्ष खरीद लेती। इस प्रकार उसकी पसन्द का बैग, पेन्सिल-बॉक्स, पानी की बोतल और यूनिफोर्म भी ले ली गयी दूसरे दिन सुबह निक्कू के घर में उमंग का माहौल था। लेकिन माँ को बार-बार ये डर सता रहा था कि उसका बच्चा पहली बार घर से निकलने पर कहीं रोने न लगे आम तौर पर बच्चे ऐसा ही करते हैं। लेकिन यहाँ भी निक्कू दूसरे बच्चों से अलग ही निकला। उसने यूनीफोर्म वाली आसमानी जैकिट पहनी और ख़ुशी-ख़ुशी स्कूल बस से शाला चला गया। उसे नये माहौल में कैसा लग रहा होगा? निक्कू की माँ को दिन एक वर्ष के बराबर लगा था। वह बार-बार घड़ी देखकर निक्कू के लौटने की प्रतीक्षा करती रही। जब निक्कू स्कूल से लौटा तो उसका चेहरा थोड़ा-सा मुरझाया हुआ था लेकिन मुस्कान यथावत टँकी हुई थी। माँ ने तुरंत टिफिन के लिए पूछा तो उसने कहा,”मम्मा जल्दी से बोतल दुद्धू दो, निक्कू भूखा है।” 

 

निक्कू अब बड़ा हो गया है इसलिए पहले दाल-चावल फिर बोतल-दूध…।” 

 

माँ ने दुलराते हुए कहा। इतना सुनकर निक्कू ने अपना मुँह फुला लिया और खुद ही रसोई की ओर बढ़ गया। अंत में माँ को मिल्क-फीडर देना ही पड़ा। स्कूल से लौटकर बोतल दुद्धू पीने का क्रम उसका कक्षा तीसरी तक बराबर चलता रहा। फिर तो जब भी स्कूल से निक्कू लौटता उसकी माँ बोतल तैयार रखती। इधर हाथ-मुँह धोकर माँ उसके कपड़े बदलती उधर निक्कू कुशन का सहारा लेकर सोफ़े के हत्थे पर सर टिका लेता और गटागट दूध पीने लगता इसी तरह फीडर से फीडिंग करते और स्कूल जाते-जाते न जाने कब निक्कू को कक्षा में प्रथम आने और किताबें पढ़ने का चस्का लग गया। वह अपने सारे कार्य पूरे मन के साथ समय से पहले करने लगा। देखते ही देखते निक्कू अपनी अध्यापिकाओं का चहेता बन गया था।

 

समय पंख लगा कर उड़ता जा रहा था। एक दिन नए स्कूल की चौथी कक्षा में उसका एडमीशन होना निश्चित हुआ। हालाँकि माँ के साथ वह भी उत्साहित था लेकिन पुराने स्कूल की अध्यापिकाओं की याद में भावुक भी होता जा रहा था। नए स्कूल के वातावरण को देखते हुए निक्कू की माँ को भी लग रहा था कि उसका बेटालकीहै जो उसे स्नेहिल अध्यापिकाएँ मिलीं। क्योंकि उनसे मिलकर निक्कू का हौसला दिन-दूना रात-चौगुना बढ़ने लगा था। निक्कू को अब पढ़ने के लिए किसी को कहना नहीं पड़ता था। चौथी कक्षा में आते-आते सेल्फ़ स्टडी के गुण उसने सीख लिए थे। परीक्षा के दौरान सुबह जल्दी उठने के लिए अलार्म लगाना हो या अलसुबह जल्दी उठना, सारे काम वह अपनी जिम्मेदारी से करने लगा था। कभी-कभी तो उसकी माँ को बहुत अचंभा होता जब निक्कू को रात के तीन बजे उठकर पढ़ते हुए देखती।     


निक्कू एक होनहार विद्यार्थी तो था ही साथ में अपनी माँ का दुलारा बच्चा भी था। भले स्कूल में उसके दोस्त बन गये थे लेकिन असली दोस्त वह अपनी माँ को ही मानता था। इसलिए अपनी जानी-अनजानी सारी बातें माँ के साथ साझा करना कभी नहीं भूलता था। उसके इस गुण के कारण अच्छे-बुरे का ज्ञान भी उसे सहज ही होता चला गया था। न कभी किसी मित्र के डिब्बे से खाना छीनकर खाता और न ही किसी से झगड़ा करता। स्कूल केएस्ट्रा कैरिकुलममें भी निक्कू दिल से प्रतिभाग करने लगा था। एक बार स्कूल के नाटक में शिक्षक का किरदार अदा करने के लिए उसने अपनी माँ का चश्मा पहना था जो प्ले के अंत में धन्यवाद ज्ञापन के समय धड़ाम से मंच पर जा गिरा। निक्कू अपनी गलती समझकर सहम गया लेकिन सभागार में बैठे सभी अभिभावक नन्हें अभिनेता के हावभाव पर खिखिला पड़े थे। 

शिक्षकों का चहेता निक्कू स्कूल के टूर के लिए भी हमेशा तैयार रहता था। एक बार चार दिनों के शिमला-टूर से वह लौटा था। माँ को चैन नहीं आ रहा था सो वह उसे स्कूल लेने चली गयी। जो टीचर अभिभावकों के साथ बच्चों को सी-ऑफ़ कर रही थीउसने जब निक्कू को अपनी माँ के साथ देखा तो बहुत खुश हुई और आगे बढ़कर बोली।मैडम, निक्कू आपका बेटा है?”

जी मैडम! कुछ गलती की निक्कू ने!

नहीं नहीं… निखिल को आप प्यार से निक्कू बुलाती हैं।

हाँ जी मैडम!

बहुत प्यारा और संस्कारों से सजा बच्चा मिला है आपको! गॉड ब्लेस यू बोथ! आपको जानकार हैरानी होगी इसने अपने मित्रों और मेरी कितनी मदद की शिमला घूमने में। कमाल का बच्चा है।” 

निक्कू की माँ ने भावुक होकर अध्यापिका को धन्यवाद किया और रास्ते में अपने बेटे को समझाया,”बड़ों से तारीफ़ पाने के लिए व्यक्ति को बहुत संयम और मेहनत करनी पड़ती है। क्या तुम अपने जीवन में इस बात को हमेशा लागू कर सकोगे?”  निक्कू ने माँ की बात बीच में काटते हुए पूछा,“माँ आपको अच्छा लगा न!

हाँ,आज मुझे तुम्हारी वजह से बहुत अच्छा लगा! मेरी छोटी-सी नाक ऊँची हो गयी।

निक्कू खिलखिलाकर हँस पड़ा और कुछ सोचने लगा। माँ ने हँसने की वजह पूछी तो बता नहीं पाया। इसी प्रकार निक्कू ने बचपन से ही आगामी जीवन के लिए बड़े-बड़े सपने देखना और उन्हें पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत करना सीख लिया था।

एक रविवार निक्कू ने स्वयं से स्नान करने की जिद ठान रखी थी किन्तु माँ अपने हाथों से उसे नहलाना चाहती थी। 

कभी-कभी बच्चों की जिद मान भी लेनी चाहिए।पिता ने जब माँ को टोका तो माँ ने बेमन हाँ कह दी और रसोई में निक्कू के मन पसंद छोले-कुलचे बनाने लगीं। अभी थोड़ा ही वक्त बीता था कि गुसलखाने की ओर से आवाज़ें आने लगीं।

माँ जल्दी आओ, जल्दी आकर देखो न! मैं तो फेमस हो गया!

निक्कू की माँ आटा गूँथ रही थी। जल्दी से हमाम में पहुँचकर देखा। निक्कू उस टब के ऊपर झुका  मुस्कुरा रहा है जिसमें कपड़े धोये जाते थे। टब में सर्फ का अंश बचे रह जाने के कारण वह छोटे-बड़े बुलबुलों से भरा था लेकिन निक्कू की बात का इससे संबंध क्या सोचते हुए माँ बोली

क्या कह रहे हो निक्कूसमझी नहीं ?” 

देखो न माँ! टब में कितने कैमरे लगे हैं और सभी में मेरी तस्वीर दिख रही है।

माँ ने जब ध्यान से देखा तो सच में सभी बुलबुलों में निक्कू की परछाईं दिख रही थी। वह दृश्य देखकर माँ बच्चे की बालसुलभ क्रीड़ा पर हा हा हा कर हँस पड़ीं। माँ को हँसता देख निक्कू के पापा भी वहीं जा पहुँचे। पिता के साथ निक्कू भी लोट-पोट हो गया।

इस फ़ेमस होने की महात्वाकांक्षी कहानी और हँसी-ठट्ठा के बीच एक दिन वह भी आ पहुँचा जब निक्कू ने बताया कि उसके यूनिट टेस्ट आने वाले हैं। 

"पापा बता रहे थे, तेरे टेस्ट आने वाले हैं। कितने अंक के होने वाले हैं?" माँ ने पूछा  

फिफ्टी मार्क्स।

यानी की पचास अंक

" हाँ मम्मा!"

"ओके,तू कितने लाएगा?”

उसमें पूछना क्या! फिफ्टी आउट ऑफ़ फिफ्टी...।

ओह वाव! यदि तेरे फोट्टी नाइन एंड हाफ़भी आयेंगे तो भी चलेगा।माँ ने नाज़ में भरकर निक्कू को चूमते हुए कहा।

उससे कम…?” निक्कू ने संयत होते हुए पूछा।

नो नो नो बिल्कुल नहीं चलेगा।माँ ने गुर्राते हुए कहा और मुस्कुराते हुए पेट में गुदगुदी कर उसे गोद में उठा लिया। निक्कू फिर शून्य में खो गया। माँ को खुश रखने वाले बच्चे को उसकी माँ की बातों ने फिर से सोचने पर मजबूर कर दिया था।

खैर,निक्कू की परीक्षाएँ खत्म हो चुकी थीं। अब अंक जानने की बारी थी जो हर दिन निक्कू ले-लेकर घर आने लगा था। पहले दो दिन माँ के बिना पूछे ही वह फिफ्टी अंक लाया है, उसने बताकर परिवार की तारीफ़ हासिल की। उसके बाद बचे विषयों में माँ के पूछने पर अपनी झेंप छिपाते हुएफोट्टी नाइन एंड हाफ़अंक निक्कू ने बताये। माँ ने नकली गुस्सा दिखाते हुए कहा,”ये आधा अंक कहाँ खो देता है तू?” सुनकर निक्कू को धक्का लगा। उसके चेहरे की गिरती रंगत देखकर माँ ने उसे सांत्वना दी और आगामी परीक्षाओं में अच्छा परफॉरमेंस करने का वादा लेते हुए माँ ने अपने अहम को पोषित करने के लिए आख़िर पूछ ही लिया।

निक्कू,तेरे अंक भले फोट्टी नाइन एंड हाफ़ आये हैं लेकिन क्लास में पोजीशन तो तेरी ही प्रथम आई होगी न?”

नहीं पता माँ! पी.टी.एम. में खुद ही देख लेना।

निक्कू की बात मानकर माँ ने उससे ज्यादा कुछ पूछताछ नहीं की समय आने पर निक्कू अपने माता-पिता के साथ विद्यालय पहुँचा। कक्षा अध्यापिका रिपोर्ट कार्ड के साथ बैठी थी। निक्कू को देखकर वह मुस्कुरायी। निक्कू ने गुड मोर्निग कर टीचर को प्रणाम किया उसकी माँ ने नमस्ते की और अपनी बारी की प्रतीक्षा करने लगी। माँ अपने बेटे की पोजिशन के बारे में निश्चिन्त थी। लेकिन उसे बार-बार ये लग रहा था कि टीचर ने निक्कू की काबिलियत पर अभी तक उसे बधाई क्यों नहीं दी। जब शिक्षिका कुछ नहीं बोली तो निक्कू की माँ ने पूछ ही लिया।

मैडम क्लास में निखिल की रैंक…?”

फिफ्त पोजिशन…मतलब पाँचवी रैंक। निखिल होशियार बच्चा है यदि थोड़ी-सी मेहनत और कर लेता तो प्रथम ये ही था। लेकिन आप परेशान मत होना शायद स्थान परिवर्तन के कारण भी ये हो सकता है। क्योंकि बच्चों को अपनी अध्यापिकाओं के साथ-साथ स्कूल की इमारत से भी भावनात्मक जुड़ाव हो जाता है। जब बच्चा नई जगह जाता है तो उसे एडजेस्ट करने में तकलीफ़ होती है। ” 

 

टीचर की बातें उसकी माँ को अब सुनाई नहीं पड़ रही थीं। उसके कानों में तोफोट्टी नाइन एंड हाफ़निक्कू की आवाज़ बज रही थी। पी.टी.ऍम. का रिचुय्ल खत्म कर जैसे ही माता-पिता बाहर निकले तो पापा ने माँ के रोकते-रोकते निक्कू के सिर पर एक ज़ोरदार चपत जड़ दी। माहौल बेहद गमगीन हो गया था। माँ अचानक मौन हो गयी और पिता  गाड़ी में भी उसे डाँटते चले गये। निक्कू अपने जीवन में पहली बार सहम कर भीगे पंछी जैसा हो गया था लेकिन उसकी आँखों में आँसू नहीं थे। घर आकर भी पिता ने एक-दो थप्पड़तूने झूठ बोलना कहाँ से सीखाकहते हुए रसीद दिए थे। लेकिन उसकी माँ ने तब भी निक्कू से कुछ भी नहीं बोला। उसने जल्दी से उसे खाना खिलाया औरशाम को पार्क घूमने जाना हैकहते हुए सोने भेज दिया। थोड़ी देर निक्कू को घड़ी की टिक-टिक सुनाई पड़ी फिर वह गहरी नींद में सो गया। 

 

शाम हुई तो माँ ने पिता से अपने साथ पार्क चलने के लिए पूछा किन्तु उन्होंने निक्कू को घूरते हुए माना कर दिया। निक्कू तैयार होकर माँ के पीछे चुपचाप एक्टीवा में बैठकर पार्क चला गया। रास्ते में अनेक प्रश्न पूछने वाला निक्कू और उसके हर प्रश्न का उत्तर देने वाली माँ, दोनों चुप थे। पार्क हँसते-खेलते बच्चों से भरा था माँ ने कनखियों से उसे देखा लेकिन उस दिन निक्कू ने झूला झूलने की माँग नहीं की थी। माँ पार्क में कोई खाली स्थान खोज रही थी ताकि वह निक्कू से विस्तार से बात कर सके निक्कू ने माँ की ओर देखकर एक सीमेंट की खाली सीट की ओर इशारा किया वे दोनों वहीं जाकर बैठ गये। दोनों के बीच मौन अभी भी अपने पाँव जमाए हुए था। माँ सोच रही थी कि बात कहाँ से शुरू की जाए। अन्ततोगत्वा माँ ने अपना मौन तोड़ा।

निक्कू अगर तुम सही-सही बताओगे तो मैं एक बात पूछना चाहती हूँ?” 


हाँ मम्मा बताऊँगा।

तुमने झूठ क्यों बोला बेटा?”

“..........”

निक्कू की आँखों में अब थोड़ा-सा पानी भर आया था, गला रूँध गया था। माँ ने उसकी हालत देखी तो भावुक हो पुचकारते हुए आत्मीयता से पूछने लगी।

निक्कू बेटा! ऐसे काम तो चलने वाला है नहीं; तुझे बताना तो पड़ेगा। अच्छा ये बता तू अपनी माँ को अपना दोस्त मानता है न?”

हाँ! दोस्त तो बिल्कुल मानता हूँ।

तो फिर जो हुआ उसे छोड़ दो। बस ये बता तूने झूठ क्यों बोला।कहते हुए माँ ने अपनी आँखें उसके चेहरे पर टिका दीं।

आप पिटाई लगाओगी ?”

सच बताने के लिए निक्कू की पिटाई मैं कभी नहीं…। वादा!

मम्मा मुझे लगा कि जब आप मेरे कम मार्क्स आये हुए सुनोगी तो आपको बहुत दुःख होगा। इसलिए मैंने ऐसा बोला।” 

तुझे कैसे पता था कि मुझे दुःख होता।निक्कू की मासूमियत पर माँ की आँखों की भीतरी कोरें पनीली हो आयीं।

याद करो आपने कहा था न! कि कम नम्बर यदि लाना है तोफोट्टी नाइन एंड हाफ़ला सकता हूँउससे कम बिल्कुल नहीं। फिर फोट्टी एट और फोट्टी सेवन एंड हाफ़ आपको कैसे....” 

निक्कू की भावनात्मक बात सुनकर माँ के होश उड़ गये। उसके पास प्रतिउत्तर के लिए शब्द नहीं बचे थे।

ये मैंने क्या किया? इस प्यारे-से मासूम बच्चे को मैंने तो रेस का घोड़ा ही बना डाला।माँ मन ही मन पछताई हुई-सी बुदबुदाई।

देखो मम्मा, आप ने कहा था न कि आप गुस्सा नहीं होगी…?” निक्कू डर कर बोला।

मैं गुस्सा कहाँ हूँ बाबा!

फिर आप क्या सोच रही हो माँ?”


कुछ नहीं….! तू नहीं समझेगा…।

सुनते ही सहमकर निक्कू ने माँ का हाथ पकड़ लिया और गिड़गिड़ाता रहा कि वह अब कभी भी झूठ नहीं बोलेगा। खूब पढ़ेगा और कक्षा में प्रथम ही आएगा। माँ ने निक्कू को अपनी गोद में बैठा लिया लेकिन अब उसे अपनी गलती साफ़-साफ़ नजर आने लगी थी। 

निक्कू तुझे मैं बहुत दिनों से आउटिंग पर नहीं ले गयी हूँ इसलिए तैयार रहना, कल हम तुम्हाराट्रूथ  एंड डेयरसेलिब्रेट करने तेरे पसंद के रेस्टोरेंट चलेगें!

सच्ची माँ! वहीं पर जलेबी…।निक्कू ने जैसे जलेबी का स्वाद महसूस करते हुए कहा।

हाँ, एक बात और अभी तक तू मुझसे वादा करता आया है लेकिन आज एक वादा मैं भी करती हूँ। अब से तेरी सक्सेस और फेलियर दोनों को सेलिब्रेट करूँगी। बस निक्कू एक बात गाँठ बाँध ले कि तू कभी झूठ नहीं बोलेगा!अपनी माँ को भावुक देखकर निक्कू उसकी छाती से चिपक गया। थोड़ी देर बाद निक्कू तरोताज़ा होकर घर लौटा आया था लेकिन माँ के हृदय में ग्लानि उफान पर थी।

****

 


 


Comments

Popular posts from this blog

एक नई शुरुआत

आत्मकथ्य

बोले रे पपिहरा...