आत्मीयता का स्पंदन


कानपुर की यशश्वी संस्था 'यथार्थ' से सम्मानित हुईं डॉ. कृष्णा श्रीवास्तव जी 


पिछले कई दिनों से प्रियंका गुप्ता यथार्थ साहित्यिक संस्था की पुरातन गोष्ठियों के साहित्यिक चित्र  यथार्थ व्हाट्स एप समूह में पोस्ट कर रही हैं। उन्हें देखते हुए मुझे प्रेम गुप्तामानीदीदी की मौन मगर गहन साहित्यिक साधना का अंदाजा सहज ही हो सका। आपकी कहानीबाबूजी का चश्मापढ़कर एक सप्ताह तक मेरा मन खोया-खोया बना रहा। क्यों? क्योंकि प्रेम दीदी ने उस कहानी को सम्वेदना के तारों से कसा है। कहानी में चित्रित रिश्तों का ढीलापन और बेपरवाही मन को लगातार सालती रही। इस तरह की सुंदर कहानी लिखने के लिए आप बधाई की पात्र हैं। मेरी ढेर सारी शुभकामनाएँ! 

खैर, आज यथार्थ परिवार ने वरिष्ठ साहित्यकार सम्मान के लिए आदरणीय कृष्णा दीदी का चुनाव कर सभी को ख़ुशी प्रदान की है। आयोजन के संयोजन और संचालन के लिए प्रिय प्रियंका को अनेक साधुवाद! इस कार्यक्रम के तहत डॉ.कृष्णा श्रीवास्तव दीदी के प्रति दो शब्द कहने का अवसर मुझे भी यथार्थ के माध्यम से मिल सका। जो मेरे लिए बेहद हर्ष का विषय है। किसी ऐसे रचनाशील व्यक्तित्व को शब्दों में बुनना बिल्कुल आसान नहीं होता जिसकी रचनात्मकता का वितान आकाशीय हो। कृष्णा दीदी अपने लेखकीय जीवन में अभी तक दर्जन भर कहानी संग्रह और पाँच उपन्यासों की रचना कर चुकी हैं। इतनी बड़ी और प्रबुद्ध कलम पर मेरी छोटी-सी कलम भला क्या लिख सकती है लेकिन कृष्णा दीदी को जब से मैंने देखा तब से अपने प्रति उन्हें बेहद हार्दिक और मिलनसार ही पाया है। इसलिए उसके प्रति कुछ शब्द स्वत: स्फूर्त हो रहे हैं। एक बात मैं जरूर कहना चाहूँगी कि चाहे डॉ.कृष्णा श्रीवास्तव दीदी हों या प्रेम गुप्तामानीदीदी, स्नेहिल शशि दीदी, आदरणीय धनंजय सर, प्रिय गिरजा कुलश्रेष्ठ जी, हरभजन सिंह जी,सराफत भाईसाहब हों या प्रिय प्रियंका सभी प्रबुद्ध,आदरणीय वरिष्ठ व सुधी साहित्यकारों से मेरा परिचय उतना नहीं हो पाता कि मैं किसी के भी व्यक्तित्व पर कलम चला सकती। हालाँकि सीमा सिंह और प्रतिमा श्रीवास्तव जी से मैं पहले से परिचित थी। फिर भी ये कार्य निश्चित ही संभव नहीं हो पाता यदि मित्र मीनाधर ने मुझे कानपुर की साहित्यक यशश्वी संस्था यथार्थ से न जोड़ा होता। अपने प्रति मीना जी के इस स्नेहिल अनुदान के लिए मैं सदा कृतज्ञ रहूँगी।

कहानी 'भींगी पलकें' का पाठ करते हुए डॉ.कृष्णा श्रीवास्तव जी 

कृष्णा दीदी को जब पहली बार मैंने यथार्थ की गोष्ठी में देखा-सुना और परखा तो मुझे उनका स्वाभाव जो बिन बोले ही मुझे समझ आया, वह था आपका हँसमुख और मृदुभाषी स्वभाव। मुझे याद आता है कि कृष्णा दीदी ने याथार्थ की एक गोष्ठी में अपनी कहानीदस्तकजो कादम्बनी २००१ में प्रकाशित हो चुकी थी, का पाठ किया था। कहानी गोष्ठी में आये सभी जनों को बेहद मार्मिक लगी थी। आपकी कहानी पर सभी सदस्यों की आत्मीय टिप्पणियाँ भी आयीं। जिसका जैसा पाठकीय दृष्टिकोण था उसने मौखिक और लिखित प्रक्रियाएँ आप तक पहुँचायीं। ये एक बात रही।  दूसरी जो अहम बात मुझे अब लग रही है कि जब मैं उनके लेखन का विस्तार और कद देख और जान चुकी हूँ तो आश्चर्य होता है कि आपने हम जैसे नौवसिखिये की टिप्पणी को भी बड़े सहजता से स्वीकार किया था। सच कहूँ तो मुझे अपनी लेखकीय यात्रा में  इसी तरह की बातों ने बड़ा हौसला दिया है। मुझे किसी व्यक्ति के कुशल तैराक बनने के बाद मिलने वाली तारीफ़ों और संग-साथ का महत्व उतना नहीं लगता जितना जब पहली छलाँग लगाने की सोच रहे व्यक्ति को अपना कोई संगी-साथी सुहृदय आकर ये कहे कि,”तुम तैर सकते हो, बिना डरे लगाओ छलाँग।या उसकी अकुशलता में अपना हार्दिक स्नेह जोड़कर उसका साथ देते हुए उसे कुशल बनने के लिए अग्रसर कर देता है, महत्वपूर्ण लगता है। जब से यथार्थ के साहित्यिक परिवार से मुलाक़ात हुई है, मुझे लगता है कि मेरा लेखन थोड़ा-थोडा सधने लगा है।


गोष्ठी का संचालन करते हुए कथाकार प्रियंका गुप्ता 

दीदी की *दस्तक* कहानी वाली गोष्ठी के बाद अभी मैं सोच ही रही थी कि कृष्णा दीदी को फेसबुक पर मित्रता आवेदन भेजूँ या न भेजूँ। क्या धारणा बनाएँगी मेरे बारे में…और जब तक मैं सोचती ही रही आपकी रिक्वेस्ट आ भी गयी। इस कार्य को कोई भावुक और अहम् शून्य व्यक्ति ही कर सकता है,आपने किया। तो मुझे आपके प्रति आदर के साथ बेहद ख़ुशी हुई लेकिन बात करने का सिलसिला आगे नहीं बढ़ सका था। कभी-कभार हम एक दूसरे की पोस्ट पर टिप्पणी कर दी तो करदी के भाव में थे। फिर एक दिन यथार्थ में मेरा कहानी वाचन का नम्बर आ गया। मन में ढेर सारी धुकधुकी के साथ मैं प्रियंका के बुलावे पर गोष्ठी में पहुँची। उस गोष्ठी में यथार्थ के कई प्रतिबद्ध लेखक मेंबर नहीं आ सके थे। क्योंकि किसी न किसी के परिवारी जनों की तबियत ख़राब थी। परेशानियों की उसी पंक्ति में कृष्णा दीदी भी अपने आपको रख सकती थीं। क्योंकि आपके पति भी एक असाध्य बीमारी से जूझ रहे थे लेकिन आपने संस्था के प्रति और नवलेखक के प्रोत्साहन के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी को समझते हुए समय निकाला और बार-बार मीटिंग लिंक छूटने-टूटने के बाद भी लगातार जब तक गोष्ठी चली मौजूद बनी रहीं। आपकी इस भावना और कृत्य ने मुझे कृतज्ञता से भर दिया। शायद यथार्थ संस्था का यही प्राप्य है। इस बात के अंतर्गत अपने मन की बात यदि मैं बताना चाहूँ तो इस बात पर मुझे भी पूरा यकीन है कि हम जब जो चाहते हैं उसे किसी भी परिस्तिथि में कर सकते हैं। चाहे कहीं जाने-आने के लिए भी समय क्यों न निकालना पड़े। बशर्ते वह कार्य हमारे मन को महत्वपूर्ण लगना तो चाहिए।


यथार्थ साहित्यिक संस्था की संस्थापिका 
आदरणिया प्रेम गुप्ता 'मानी' जी 

खैर, बात यहीं खत्म नहीं होती है। कृष्णा दीदी ने मेरी कहानी पर मुझे मौखिक प्रतिक्रिया दी सो दी ही थी। उन्होंने अपनी लिखित प्रतिक्रिया भी व्हाटस एप पर भेजी। सच कहें तो सच्ची और साहित्यनिष्ठ प्रतिक्रियाएँ ही एक रचनाकार को तराश देती हैं। दीदी के इस व्यवहार ने मुझे फ़ोन करने पर मजबूर कर दिया और मैंने अपनी विद्यालयी कक्षाएँ समाप्त कर फोन मिलाया। फोन पर बात करते हुए लग रहा था कि मैं किसी उत्साही नवयुवा से बात कर रही हूँ। आपकी आवाज़ की खनक और बात करने की स्निग्ध चाहत ने मुझे काफ़ी देर तक एक दूसरे से जोड़े रखा। हमने साहित्य की अहम विधा कथा लेखन पर काफ़ी चर्चा की और उसी साहित्यिक बातचीत की गहमा-गहमी के दौरान मैंने अपने उस आशावादी विचार को भी दीदी के साथ साझा किया, जो लगभग दामिनी केस के बाद हिली मेरी चेतना सामाजिक बदलावों की हलचल के बारे में बार-बार सोचते  हुए परेशान करती आ रही थी।

हालाँकि सबसे पहले अपने इस विचार को लेकर मैं मीनाधर जी के पास ही गयी थी। तब मैंने ये सोचा था जिस प्रकार से आज का चलन है कि चार-पाँच लेखक मिलकर एक उपन्यास लिख डालते हैं- क्यों न हम दोनों मिलकर इस पर साझी कलम चलायें। वह अभी भी विचाराधीन है। जैसे ही हमारी आपसी सहमति बनी हम लोग साझेदारी में एक उपन्यास लिखेंगे। वह अलग की बात है लेकिन विचार फिर एक बार बदला कि तब तक क्यों न एक खांटीपुरुष विमर्शपर कथा संग्रह सम्पादित किया जाए। जितने उत्साह से सोचा उतना ही ठंडा पड़ गया क्योंकि संपादकीय शऊर तो मेरे पास से नदारत था।

यथार्थ गोष्ठी में आये  लेखक और कथाकार 

कृष्णा दीदी से बात करते हुए मुझे उसी का सब का ख्याल हो आया। मैंने उनके सामने यूँ ही अपना मत प्रकट किया तो दीदी ने हाथों-हाथ लेकर मुझे उसपर कार्य करने के लिए प्रोत्साहित कर दिया। मैं अभी उस योजना के बारे में अपने ताज़ा मन से सोच ही रही थी कि दीदी के सम्पादन में ये संग्रह आ जाएगा तो अच्छा रहेगा। मेहनत का जो कार्य  होगा मैं करती रहूँगी। क्योंकि कारण वही कि किसी नये कार्य करने से पहले उसका अनुभव होना आवश्यक होता है। जो कि मेरे पास था नहीं और दीदी के पास अथाह था लेकिन दीदी की उदारता उन्होंने संपादक द्वय करके एक विज्ञप्ति बनाकर मुझे शाम को भेज दी और हम उस कार्य में लग गये जो मेरे विचारों में पड़ा-पड़ा सुस्त हो चला था। अब ये हाल है कि कभी भी दीदी बात कर लेती हैं और कभी भी मैं उनको फोन मिला देती हूँ।

इसी दौरान हम लोग वीडियो कोल पर भी बातें करने लगे हैं। उसे मद्दे नज़र रखते हुए देखा तो मुझे महसूस हुआ कि आप सिर्फ अच्छी लेखक ही नहीं अपितु एक जुझारू इंसान भी हैं। आपके बच्चे बड़े-बड़े ओहदे पर शहर से बाहर पोस्टेड हैं। आप जामनगर में एक बहुत बड़े घर को एक लड़की जिसे आप बिटिया कहती हैं, के साथ रहकर सहेजती और सम्हालती हैं। जैसा कि आपने बताया कि अक्सर आपके पति अस्पताल में रहते हैं लेकिन मैं आपसे जब भी बात करती हूँ, मेरे पास उनकी हँसमुख उत्फुल्लता ही बहते हुए चुपके से चली आती है। आपकी परिस्थितियों का आँकलन करते हुए तो यही लगता है कि दीदी को सिर्फ साहित्यिक,सामाजिक और व्यवहारिक ज्ञान ही नहीं अपितु आपके पास दार्शनिक व तात्विक समझ भी है। क्योंकि वे जानती हैं कि तत्व ज्ञान ही व्यक्ति को भावनात्मक रूप से सम्हाले रखता है।

दीदी लेखक-चित्रकार के साथ-साथ एक बहुत सुंदर छायाकार भी है, उनके चित्र देखकर मैंने महसूस किया। आप स्वस्थ्य और प्रसन्न रहें ये कामना करती हूँ। अतएव अब मैं कह सकती हूँ कि कृष्णा दीदी का साथ मेरे लिए आत्मीयता का स्पंदन है। अंत में यथार्थ संस्था से सम्मानित होने के लिए अनेक-अनेक शुभकामनाएँ! अस्तु…! 

*** 

कथाकार आ.हरभजन सिंह महरोत्रा जी 

कथाकार व लेखक आ.धनञ्जय सिंह जी 

लेखिका आ.प्रतिमा श्रीवास्तव जी 

कथाकार प्रिय शशि श्रीवास्तव जी 

कथाकार प्रिय  मीनाधर पाठक जी 

कथाकार आ.गिरजा कुलश्रेष्ठ जी 


लघुकथाकार प्रिय निवेदिता जी 

कल्पना मनोरमा 

यथार्थ संस्था के भव्य आयोजन के चित्रों के साथ-साथ डॉ. कृष्णा श्रीवास्तव जी के सम्मान में मेरे द्वारा पढ़ा गया स्नेह पत्र!!भी संलग्न है!

Comments

  1. इन स्नेहिल, सुखद और आत्मीयता से भरे पलों को साझा करने के लिए आभार

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    1. बहुत सुंदर और सफल आयोजन रहा . अनेक शुभकामनाएँ और बधाई सभी को........!

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