गरीबी की मुट्ठी में गठरी भर क्राइम

 

हिंदू धर्म-संस्कृति में अनेक देवी,देवता, ग्रंथ, पुराण, हवन- यज्ञादि का विधान है। इन सभी तात्विक विधानों में तत्व ज्ञान भी निश्चित ही छिपा होगा। जिसे यहाँ पर विस्तार से मैं नहीं ले रही हूँ क्योंकि जितना हम समझ पाते हैं दरअसल वह बात उसके आगे से शुरू होती है। खैर, मैं बात कह रही थी कि जो भी भारतीय विधि-विधान बनाये गये हैं, उन सब का एक ही उत्कर्ष है कि जीव संसार में सुमार्गी बनकर  अपने और अपनों का जीवन सर्वोपांग सुंदर बनाते हुए विचरण कर सके। अनेकानेक ग्रन्थ-पुराणों में एक ग्रन्थ "गरुड़ पुराण" के नाम से भी जाना जाता है उस पुराण का पठन-पाठन जीव के मरणोपरांत करने का विधान है। 

कहने को 'गरुड़ और पुराण' इन दो शब्दों में डरने जैसी कोई बात नहीं है लेकिन ये मृत्युपरांत बाँचा जाने वाला ग्रंथ है इसलिए मुझे इस नाम से बचपन में बहुत भय होता था। जबकि बचपन से मैं तुलसी कृत रामायण, राधेश्याम रामायण, गीता महापुराण, सुखसागर,ऋषि वशिष्ठ पुराण आदि आदि का नियमित पाठ सुना करती थी। क्योंकि हमारे घर में कोई न कोई इन ग्रन्थों में से एक को बाँच कर सुनाने का संकल्प लिए बैठा रहता था। इन्हीं सबके साथ जैसे जन्म के संस्कार नहीं रुकते तो मृत्यु के कहाँ से ठहरने वाले? बस उससे जुड़े क्रिया कर्मों में जो पुराण सुनाया जाता था उसका नाम गरुड़ पुराण है। दादी गाँव में हो रहीं सभी कथा-भागवत रुचि से सुना करती थीं और साथ में मुझे भी ले जाती थीं। इस ग्रंथ को सुनने का अवसर भी मुझे उन्हीं के सानिद्ध्य में मिला। चुंकि बड़े-बूढ़े जनों के बीच बैठना होता था तो बहुत ध्यान से सुनना पड़ता था। कुछ तो माहौल ही गमगीन होता था कुछ दादी की डांट खाने का डर सो सर झुकाए उस नीरस कथा को सुनती रहती थी। लेकिन जब-जब इस कथा को सुना तो बहुत छोटे की तो याद नहीं लेकिन जब से मन अच्छा-बुरा समझने लगा तब जीव को दी जाने वाली यातनाएँ और कुंभीपाक नर्क के बारे में विवरण सुनकर मेरा मन बहुत मंथन करता रहता था। इस विषय पर माँ के साथ बहुत चर्चा भी होती थी। 

फिर जब और बड़ी हुई। संसार को और भी नजदीक से जाना तो मुझे लगा गरीबी से बढ़कर नर्क दुनिया में और कोई नहीं है। गरीबी ही एक ऐसा नरक है को जीव को हर प्रकार के कुकर्म करने को बाध्य करता है और एक पल भी इस नर्क में वह सुकून से जीवित नहीं रह सकता जब ये बात समझ आ गयी तो इस बात की चिन्ता-चिंतन कि गरीबी का कारण क्या होगा? आख़िर एक जीव गरीबी में पैदा क्यों कर होता है? अगर ये पता चल जाए तो शायद ज़िन्दा रहते ही जीव अपने अगले जन्म की तैयारी ठीक से कर सके। इसके बावत ग्रन्थ हमें बताते हैं दान से राज्य की प्राप्ति होती है। गीता ग्रन्थ में भी दान की बड़ी भारी महिमा बताई गई है। गन्थ बताते हैं कि दान करने से जीव अपना अगला जन्म श्रीमान माता-पिता के घर हो निश्चित कर सकता है। लेकिन आज का दान-धर्म दिखावा परस्ती में आ चुका है तो हो सकता इसना फलदाई न रहा हो क्योंकि दान के भी अपने विधान होते हैं

बात गरीबी की हो रही है तो सबसे बड़ा नर्क जो आसमान में नहीं धरती पर ही मौजूद है वह है गरीबी ये बात मुझे पक्के से महसूस होती है। और जितना बड़ा सत्य ये है कि गरीबी की मुट्ठी में गठरी भर क्राइम बंद होते हैं। उतना ही बड़ा सत्य ये है कि इसे अपने लिए कमाता भी स्वयं जीव ही है। वो अलग बात कि इसे प्राप्त होने में उसके जन्म कितने लगते होंगे? ये संसार के गर्भगुहा में निहित है 

गरीबी के कारण क्या हैं? यदि पता चल जाए तो कोई भी जीव अपने पाँव पर कुल्हाड़ी क्यों मारेगा? शायद इसी भुलावे में भटकाकर संसार की संसद अपना काम सुचारु रूप से करती है। यही मायावी सांसद की रणनीति भी होगी लेकिन फिर भी मन जान लेना चाहता है कि आख़िर वे कौन-सी इंसानी वृत्तियाँ हैं जो उसके पतन का कारण बनती हैं? और मरणोपरांत तक जीव का पीछा नहीं छोड़ती? ये जानना कठिन है लेकिन हम अपना अगला जन्म स्वयं निर्धारित करते हैं, ये बात गीता दृढ़ता से कहती है। 

आज व्हाट्सएप पर तैरती इस तस्वीर के जीव को देखकर न जाने कितने नर्क जो गरुड़ पुराण में सुने थे, एक एक याद आते रहे। मन रह-रहकर किलसता रहा इस दीनता पर। मन से एक ही स्वर प्रस्फुटित हो सका कि ईश्वर हर जीव को कुशल दे..... अस्तु!

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