मिडिल क्लास लड़की

"आओ आवरण बाँचें" में डॉ० सुषमा त्रिपाठी जी की नव लोकार्पित कहानी संग्रह 'मिडिल क्लास लड़की’ के आवरण और शीर्षक पर कुछ बातें की जाएँ।

"आप हल्के-भारी क्यों होते हो,सब ठीक हो जाएगा यार!" मतलब कहने वाला कहना चाहता है कि आप अपना आपा मत खोयें सामान्य बने रहें। परिस्थितियाँ आटोमेटिक सम्हल जायेंगी। यही बात गौतम बुद्ध ने अपना घर-द्वार त्याग कर सीखी थी कि मनुष्य को मनुष्य बने रहने के लिए माध्यम मार्गी बनना होगा। आपके पास जो कुछ भी है, उसे बढ़ा-चढ़ा कर मत बताइए। संतोष सबसे बड़ा धन है। दूसरों से प्रेम नहीं कर सकते हो तो ईर्ष्या भी मत कीजिये। घृणा, घृणा से नहीं अपितु प्रेम से ख़त्म होती है। कहने वाले मनीषियों ने कहा कि ये ही गुण-भाव हैं जो शाश्वत सत्य में गिने जाते हैं। डॉक्टर से मिलो तो वह समझता है, न कम खाओ न ही ज्यादा क्योंकि सबसे बड़ा उपहार स्वास्थ्य है। बिना सेहत के जीवन, जीवन नहीं, उसे पीड़ा की एक कमज़ोर स्थिति समझिये और सम्हल कर रहिये। किसी समाज शास्त्री से पूछो तो वह कहता है कि न स्वयं को छलो न ही दूसरे को क्योंकि वफ़ादारी सबसे बड़ा संबंध है।

इसके अलावा यदि खेल-खेल में सोचा जाए तो कोई भी बालक खेल के मैदान के मध्य में खेल का आनन्द लेना चाहता है। पगडंडियों पर चलते हुए माएँ बच्चों को समझाती हैं, बीच में चलो नहीं तो गिर जाओगे। तीन बच्चों में बीच वाला बच्चा हमेशा डांट-मार खाने से बच जाता है। बीच सभा में बैठकर हम सबसे जुड़ा हुआ महसूस करते हैं। एक गृहणी सारा दिन खटकर जब बीच आँगन में खाट डाल कर चाँद से बातें करती है तब उससे मिडिल शब्द की परिभाषा पूछिये, सुनने वाले को सुनकर आनन्द का अनुभव होगा कुल मिलाकर यदि कहा जाए तो मध्यम यानी कि ‘मिडिल’ शब्द की अपनी  अलग ही गरिमा और गुणवत्ता है लेकिन मिडिल क्लास को संघर्षों का पर्याय कहा जाए तो गलत नहीं होगा

कानपुर की प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ० सुषमा त्रिपाठी जी की नव लोकार्पित कथा कृति ‘मिडिल क्लास लड़की’ का आवरण देखा तो अच्छा लगा। बीच मैदान में बैठी स्त्री अपने दोनों हाथों को ऐसे उठाये हैं, जैसे अपना आसमान उसने खुद उठा रखा है। सच ही कहा जाता है कि मिडिल क्लास, संसार का ऐसा क्लास है जो कार्य ये कर सकता है, वो न ही 'अपर क्लास' वाले करते हैं और न ही निम्न क्लास वाले। एक तो इस मामले में मिडिल क्लास अव्वल दर्जे का है कि कोई भी इसकी नकल नहीं करना चाहता। दूसरे, दुनिया में जितना भी रोना रोया जाता है, उसमें पचहत्तर प्रतिशत इसी क्लास वालों को रोना पड़ता है। 

मिडिल क्लास वाला व्यक्ति छाँछ फूँक-फूँक कर पीता है। खून-पसीना एक करना जानता है। कुछ अच्छा पाने के लिए धरती-आसमान एक करने की हिम्मत रखता है। इसे वेद की ऋचाओं का अनुयायी भी बने रहना होता है और अपना पेट काटकर पुरोहितों को दान भी करना होता है। ये कहना भी उचित होगा कि तैंतीस कोटि देवी-देवता मिडिल क्लास की दम पर ही धूप,कपूर और भोग पाते हैं।

जब किसी मिडिल क्लास लड़की की बात की जाती है  तो सबसे पहले यही महसूस होता है कि माँ दुर्गा के पास तो आठ ही हाथ थे लेकिन इसके पास तीन सौ पैंसठ हाथ और बारह सिर होते हैं। हर दिशा में, हर दिन मिडिल क्लास स्त्री उतनी ही फुर्ती से काम करती दिखती है जितनी फुर्ती से हवा चलती है। रिफाइंड ऑइल की कैन काटकर उससे क्यारियों में पानी डालना हो या सुतली से चप्पल की बेल्ट अटकाना हो ये सब जुगाड़ करना जानती हैं। इसके पास गजब की मेधा और कुब्बत होती है ये अकेले चार चोरों को पछाड़ सकती है। और अपने पर उतर आयें तो लंपटों को सही रास्ता दिखा सकती है।

डॉ० त्रिपाठी के पास अच्छे-बुरे अनुभव का एक लम्बा दौर है। तभी तो उन्होंने शीर्षक के अनुसार आवरण चित्र चुना है। कृति आवरण पर बना चित्र कृति के कलेवर की बात कहता हुआ-सा लग रहा है। आवरण में बैठी हुई स्त्री की छवि देखकर लगता है कि भले मिडिल क्लास लड़की अभावों की काली छाया में लिपटी रहती हो लेकिन उसके पास अंदरूनी शक्ति का अपार भंडार है। उसके हृदय में निहित शक्ति की किरणों से उसका अपना घर तो रोशन होता ही है, मित्रों और रिश्तेदारों को भी वह भरपूर मदद कर उन्हें मुसीबत से उबार लेती है। आवरणीय बारहसिंही स्त्री के ऊपर बादलों के मध्य एक चिड़िया उड़ रही है वह चिड़िया साधारण नहीं है। वह युक्ति की चिड़िया है। 

मध्यम वर्ग वालों को मालूम होगा वे इसी युक्ति नामक चिड़िया के सहारे अपने सारे युद्ध फतह कर लेते हैं। सच कहा जाए तो मिडिल क्लास लड़की उस किसान की तरह होती है जो धूप और बरसात में रहकर भी अपने परिवार के साथ संसार का पेट पालता है। लेखिका ने अपनी इस कृति के माध्यम से मध्यम वर्ग के सुख-दुःख को अपने अनुभवी शब्द दिए और न जाने कितने बेजुवानों को शब्द मिल गये, कितनों की पीड़ा हल्की हो बिसर गयी होगी। मध्यम वर्ग के वातावरण में रहकर एक माँ अपने बच्चों को कैसे-कैसे नदी-नाले लाँघते-फलाँगते शिखर तक पहुँचा पाती है। देखने वालों के पसीने छूट जाते हैं लेकिन वह अपने पथ पर अटल रहती है। मध्यम मार्ग, समझने वालों के लिए सुकून का मार्ग है। इन्हीं शब्दों के साथ बस मैं यही कहूँगी कि आप यूँ ही लिखती रहें और छपती रहें। अनेक शुभकामनाएँ! 

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कृति : मिडिल क्लास लड़की 

लेखिका : डॉ० सुषमा त्रिपाठी 

प्रकाशन : इरा पब्लिकेशन 

कृति मूल्य: 199/-

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Comments

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(२४-१२ -२०२१) को
    'अहंकार की हार'(चर्चा अंक -४२८८)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  2. वाह लाजबाव रचना

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  3. सार्थक और सुंदर समीक्षा, लेखिका को बहुत बहुत बधाई !

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  4. वाह! सराहनीय।

    शब्द शब्द मन में उतरते... गहन सृजन।
    सादर

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