माँ केवल देह नहीं होती

 

चित्र- अनुप्रिया 

माँ के होने से बच्चों के सपने होते हैं, न होने से सारे सपने मर जाते हैं फिर हम चाहे कितने भी बड़े क्यों न हो जाएँ। जिंदगी की भागम-भाग के सपने तो रोज़ ही आते हैं लेकिन उन सपनों में धरती से विदा गयी हुई माँ कभी नहीं आती। मनुष्य रोये या हँसे यही शायद दुनिया की रीति है। लेकिन मेरी दुनिया तो तुमसे अब भी जुड़ी है। तभी तो जब-जब मैं कमज़ोर पड़ती हूँ, उन पलों की सूचना न जाने कौन तुम्हें दे देता है। जो तुम मेरे उदास होकर या रोकर सोने पर मेरे सपनों में दौड़ी चली आती हो और मेरी सुबह, उर्जावान होकर मुझे अपने कन्धों पर उठा लेती है

सुना है संसार से जाने के साल-ओ-साल बाद तक आत्माएँ उसी घर में रहती हैं, जिसे उन्होंने जिंदा रहते बनाया होता है। वे अपने ना होने में अपनों को देखती हैं। विलाप भी करती हैं लेकिन मौत के बाद का रोना कभी जीवन सुनता नहीं है फिर उन आत्माओं का तारतम्य मिथ्या जगत से जल्दी ही टूट जाता है। समय का खोखलापन जितना ज़िन्दा व्यक्तियों को पेरता है उतना ही आत्माओं के सन्नाटेदार खगोलीय जीवन को भी परता है। एक दिन सत्य के अवगाहन में लगी आत्माओं के लिए संसार खत्म हो जाता है। जब वे नितांत आकाशीय नीरवता की निवासी हो जाती हैं तब संसार एक बार फिर नया होकर उनके लिए अपने द्वार खोलता है। इसी द्वंद्व में आत्माएँ मानवीय  बंधनों का अगला-पिछला हिसाब रखना भूलकर,अपनों का अपनत्व पी कर चन्द्रमा की चाँदनी के साथ अन्य में पुन: बरसती हैं 

किसी खुशहाल दंपत्ति के घर जन्म कर वे खुशहाल आत्माएँ नए सिरे से मोह के नवीन  बंधन रचती हैं। वे फिर किसी की माँ बनती हैं और ममता का सजीला कारोबार करती हैं। संसार को भोगने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को स्त्री की नहीं, माँ की ज़रूरत होती है। क्योंकि बिना जन्म लिए संसार देखना असम्भव है जो बच्चे जीवन तमाम माँ को माँ मानते रहते हैं, उनके लिए माँ केवल देह नहीं होती बल्कि मोह का एक रेशमी अटूट ताना-बाना होती है। साँसों का एक मजबूत मुकम्मल सिलसिला होती हैं। उन माँओं के बच्चे अपनी माँ के जाने के बाद उनमें किसी व्यक्ति या रिक्तता में उन्हें नहीं अपितु अपने गाढ़े मोह में ही तलाशते हैं।

माँ 

माँ के साथ किसी का रिश्ता होता होगा बंधन वाला लेकिन मेरे लिए मेरी माँ का रिश्ता गमकते हुए मोह का ताज़ा दम उपहार है। ये बात मैं अच्छी तरह से जानती हूँ कि मेरी मुक्ति माँ की यादों से छूटने के बोध से नहीं, उनके मोह में घिरे रहने से ही होगी। क्योंकि माँ के बिना मेरा कोई अस्तित्व नहीं जान पड़ता। मैं दुनिया को अब भी तुम्हारी ही आँखों से देखती हूँ। तुम्हारा ही दिल मेरे सीने में धड़कता है। ये सिर्फ मेरे साथ ही नहीं, तुम मेरे बच्चों की महफ़िल में भी पूरी जिंदादिली के साथ हँसती-बोलती हो। वे तुम्हें अकसर याद करते हुए तुमसे जुड़ी तमाम बातें करते हैं। बच्चों की आँखों में तुम्हारे प्रति श्रद्धा देखकर मुझे संतोष होता है। तुम्हारी दूरदर्शिता पर हम सब कुर्बान हैं। हम सब जानते हैं कि अच्छी माएँ कोयल नहीं, बया होती हैं। माँ, तुम सच्ची में बया थीं तुम्हारा बुना हुआ ही आजतक मैं ओढ़ती-बिछाती आ रही हूँ।

तुम्हारे बुने विचारों की चादर सोते-जागते मुझसे लपेटे रहते हैं। तुम्हारा कथन,”हर वक्त घड़ी पर नज़र रखो, नहीं तो पिछड़ जाओगी।” अब मेरे बच्चे भी सीख चुके हैं। हम पूरे उत्साह से अपने दिन का प्रारम्भ करते हैं। जैसा कि तुम हमेशा चाहती थीं कि अपने लिए ख़ुशी स्वयं खोजो, किसी पर आश्रित मत रहो। मैंने अपने और अपनों के लिए ख़ुशी ख़ोज ली है। आप भी जानोगी तो खुश होओगी कि मुझे शब्दों में रमे रहना सबसे ज्यादा सुकून देता है। शब्द ब्रम्ह है, माँ! तुम जहाँ हो मेरी चिंता मत करना, बस हमारा प्रेम तुम तक बराबर पहुँचता रहे और तुम उसे स्वीकारती रहो, ऐसी कामना है। तुम जिस जगह,जिस रूप में हो वो जगह फूलों-सी कोमल और महकदार हो। मेरे हृदय में  तुम्हारे नाम का कोना सदैव तुम्हारा है…….!तुम्हारे प्रति हर दिन मेरा स्मृति दिवस है!

Comments

  1. आपकी सबसे बड़ी पाठक मैं हूँ आदरणीय दी शब्द शब्द यों लगता है ज्यों मेरे कलेज़े से निकले हो। माँ की स्मृति में लाज़वाब सृजन।
    सादर

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    1. मुझे बल मिला आपके शब्दों से. हार्दिक आभार

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  2. माँ के साथ किसी का रिश्ता होता होगा बंधन वाला लेकिन मेरे लिए मेरी मां का रिश्ता तो गमकते हुए मोह का ताज़ा दम उपहार है। ये बात मैं अच्छी तरह से जानती हूँ कि मेरी मुक्ति छूटने के बोध से नहीं, माँ के मोह में घिरे रहने से ही होगी।... आँखें हो गई।
    अपना ख्याल रखें।
    सादर

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    1. हार्दिक स्नेह अनीता जी, आपने मेरी भावनाओं को और भी त्वरा दे दी. आपका स्नेह महसूस हुआ. सादर

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