सुबह ऐसे आती है

सुबह का आना एक शाश्वत प्रक्रिया है। उसके लिए न कोई दरवाज़ा खोलता है और न ही कोई सूरज को उठाकर मुंडेर पर रखता है। चाहे कितना भी कुहासा क्यों न क्षितिज के छज्जों से लटका हो परंतु भोर अपनी कोहनी से उसे ठेल कर धरती पर झम्म से कूद ही पड़ती है।

हमारे जीवन में भी कुछ ऐसे ही दृश्यों का प्रकटन होता है। कुछ स्वयं से कुछ किसी की प्रेरणा के द्वारा। कहने का तात्पर्य ये है कि हमारे मस्तिष्क के पास भी विचारों की सुबहें और शामें होती हैं। कुछ अन्यथा और कुछ बेहद ज़रूरी। कुछ सार्थक कुछ निरर्थक।

हमारे रोजमर्रा के जीवन में कितने भी घनघोर बुरे विकार विचार बनकर मन में एक सघन संध्या का निर्माण क्यों न करें लेकिन सकारात्मक विचारों वाली सुबह हमें उबार ही लेती है। दमघोंटू भावनाओं के आंगन में मुस्कुराहट वाली सुबह कहीं न कहीं से खिल ही पड़ती है।

अंजू शर्मा जी ने अपनी कहानियों में कुछ इन्हीं भावों को स्थान दिया है। वे कह रही हैं कि कितना भी कोई क्यों न ये कहता रहे कि समय बदल गया है। आज के दिन लुहार की भट्टी जैसे होते हैं। न दिन का पता चलता है न रात का। सब का सब बुरे वक्त के कुचक्र में आ कर फंस गया है। गांधीमय भावना को तो सभी ने उठाकर ताक पर रख दिया गया है।

भाई,भाई से चिढ़कर बात करता है। लड़कियों को अपनों से ही ज्यादा खतरा बढ़ गया है। खाना पीना सब दोयम दर्जे का मिल रहा है और दूर रहने का महान काम कोरोना ने भी कर दिया है । आज किसी की ओर स्नेह से बाहें फैलाओ तो उसकी आँखें बड़ी बड़ी होकर फैल जाती हैं। वह अगले को शंका से देखने लगता है, वगैरह वगैरह ।

कुछ भी कोई कहे लेकिन अंजू शर्मा जी कहती हैं कि आप लोग अपनी आंखों पर लगा हुआ चश्मा बदलिए। सुबह सुनहरी थी, सुनहरी है और सुनहरी ही बनी रहेगी। बस उसको ध्यान से देखने की जरूरत है।

क्योंकि सुबह आज भी फूलों के परिधान पहन कर ही प्राची दिशा से नीचे कदम रखती है। उसके कानों में इत्र का फाहा आज भी होता है। उसके खुले लहराते बालों में बेला कुसुम की लड़ियां आज भी महमहा रही होती हैं। मलयागिरि से आने वाली पवन का दुशाला उसके कांधे पर आज भी पड़ा होता है। माथे पर सूरज का लाल टीका जैसे पहले दमकता था आज भी दमक रहा होता है।

इसलिए वे कहती हैं सुबह और कैसे भी नहीं आती बल्कि "सुबह ऐसे आती है!" समझे?

चित्रकार ने आवरण सज्जा में जो प्राकृतिक नज़ारे सुनहरे और लाल रंग में उकेरे हैं उससे शीर्षक की शान और बढ़ा दी है। इन्हीं शब्दों के साथ अंजू शर्मा जी को अनेक शुभकामनाएं!!

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