शब्दों में जीवन
बच्चे की माँ ने सुबह सूरज के जागने से पहले अपना बिस्तर छोड़ दिया था। उसने बिना रुके अपने घर का सारा काम किया था। जो जैसा कहता गया वह दिन के बजते झुनझुने के साथ दादी,ताई और बुआ की बातें और डांटें खाती गयी और अपना सेवा-धर्म निभाती गयी। जैसा उसकी माँ ने बताया था। उसने रात होते-होते सारे घर को व्यवस्थित किया और फिर गुनगुनाकर सुलाया आँगन में बने तुलसी के बिरवे तक को और जब गई वह ख़ुद सोने तो किसी ने भी रोक कर उससे उसका हाल नहीं पूछा।बच्चे की माँ ने बच्चे को गोद में उठाया और आँखों में दो गर्म आँसू लेकर चली गयी सोने। शरीर की थकावट इतनी वह जिस करवट सोई भोर में वैसे ही उठ गयी। उस वक्त उसका बच्चा छोटा था वह रमा रहा अपने ही छुटपन में लेकिन अपने गहरे मौन में बच्चे ने महसूस की माँ की धड़कन और उसने जल्द ही सीखा बोलना लेकिन उसकी माँ अब भी अबोली थी। बच्चा अब समझदार था किन्तु छोटा था। वह पानी मम और रोटी कहता था अत्ता पर उसने देखी अपनी माँ की अबोली घुटन के साथ-साथ कमरे के अंदर वाली पिता की बदसलूकी।
बच्चे ने अपने पिता की चालाकियों पर रखी गाढ़ी नजर। उसने देखा उसके जीवन में उसकी माँ के द्वारा किये गये सारे अच्छे कार्यों का श्रेय उसके पिता चुपके-चुपके करते गए अपने नाम। उसकी माँ चुप थी। जितने काम बिगड़े उतने उसके पिता ने कर दिए थे उसकी माँ के नाम। उसकी माँ ने मौन भरे संतोष के साथ उसके पिता के दिन-रात सजाये और जब गयी थक-हारकर सोने तो बच्चे ने कहा,“माँ तू मत होना कभी भी उदास क्योंकि मैं हूँ न तेरे साथ।” माँ ने चिपका लिया छाती से अपना लाल और कर दिया सबको माफ।
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सुंदर शब्दों का जादू ।
ReplyDeleteरेखा