मैं समय हूँ

मैं समय हूँ! धरती आकाश मुझमें ही कार्य करते हैं और वे आराम भी मुझमें ही पाते हैं। इनका जन्मदाता और पालन करता मैं ही हूँ।  संसार में मुझे काल के नाम से भी जाना जाता है । मैं ही प्रलय हूँ मैं ही प्रकृति हूँ। बड़े -बड़े चोटी धारी हिमालय मुझमें ही वास करते हैं और जब किसी चींटी को चोट लगती है तो उसकी पीड़ा में रोने वाला मैं ही हूँ।जब गंगा-जमुना के प्रबल वेग में मैं डुबकी लगाता हूँ तो दसों दिशाएँ परिधान बन मुझसे लिपटना चाहती हैं। दिन का सूरज मेरे माथे पर खौर तिलक  बनकर चमकता है तो रात्रि मेरे नयनों का काज़ल बनने में सुख पाती है । चन्द्रमा मेरी ग्रीवा की शोभा बढ़ाता है तो समुद्र मेरे चरण धोकर खुद को धन्य समझता हैमेरे मुस्कुराने मात्र से जीवन का सृजन होता है और मेरे क्रोधित होने पर प्रलय भी बिना बिलम्ब किये समस्त संसार को तिनके की तरह तोड़कर रख देता है । मानवीय इतिहास इस बात का गवाह है कि जब -जब इस सुंदर पृथ्वी पर धर्म की हानि हुई है तब-तब मैंने ही सतयुग में हरिश्चंद्रत्रेतायुग में रामद्वापरयुग में कृष्ण बनकर जन्म लिया है और धर्म की स्थापना कर समस्त वेदों की रचना मैंने ही की है। मैं ही गीता -भागवत में लिखे श्लोक हूँ और मैं ही आर्य मौन हूँ।
मेरे साथ युगों -युगों से मानव संस्कृति अपनी सभ्यता को परिमार्जित करती आ रही है। जीवन क़दम ताल करता हुआ मेरे पीछे -पीछे चलता है । मृत्यु का सारा कारोबार मेरे इशारे पर चलता है । मनुष्य के शरीर में प्राणवायु बनकर मैं ही स्पंदित होता हूँ ।मैं ही उसके मुस्कुराने का कारण बनता हूँ और मैं ही उसका गहन रुदन हूँ।
बीते  युगों में मनुष्य अपनी मनुष्यता की परिधि को कभी नहीं लाँघता था| अपने उपयोग में आने वाली वस्तुओं के महत्व को समझते हुए जरूरत भर ही उनका उपयोग करता था । गए युगों में लालच नामक मायावी तत्व मुझसे डर कर कहीं गिरि कंदराओं में बेहोश पड़ा रहता था लेकिन जब से राजा परीक्षित ने सोने के  मुकुट को अपने माथे पर धारण करने की गलती कीकलियुग को अपने पाँव जमाने का मौका मिल गया शायद कलियुग इसी मुर्खता की तलाश में था क्योंकि बुराई व्यक्ति को गुमराह कर उससे गलत काम तो करवाती है लेकिन सारा दोष अपने माथे पर न लेकर गलती करने वाले के माथे पर थोप देती है ।अब जब कलियुग आ ही गया तो उसका असर होना भी लाज़मी था । चारों ओर गरीबी ,भुखमरी ,लूट-मार करने वाले और अहमी लोगों ने मेरी ओर से बिल्कुल अपना मुख फेर लिया ।तो मैं भी संसारियों का भार उन्हीं पर छोड़ अपने गहरे मौन में उतरते चला गया लेकिन आज फिर से मनुष्यों से परेशान होकर ब्रम्हांड ने मुझे पुकारा है । उसकी कातर ध्वनि को मैं कैसे न सुनता । इस सबके पहले मैंने आप सभी को कभी भूकम्पतो कभी सुनामी बनकर सचेत करना चाहा लेकिन मद की सुनहरी चमक में आप मनुष्य चौंधिया चुके थे । आप सभी ने अच्छे-बुरे में अंतर समझना ही छोड़ दिया था जब काम बिगड़ जाता है तब सम्हलना मुश्किल हो जाता है|
ये जो समय चल रहा है | बहुत ही भयानक समय है | इससे बुरा समय भला क्या होगा जब आदमी, आदमी से दूर भागने लगा हो | ये वक्त आपको चिल्लाने की मोहलत नहीं देगा बल्कि ये समूची मानवता को डिजिटल बनाकर ही छोड़ेगा । परचूनी की दुकान से लेकर विद्यालय और अस्पताल सब मोबाइल में सिमट जायेंगे |विज्ञान को अपनी ताकत समझने वाले इंसान ने अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी मारी है । उसने सम्वेनाओं से कलपुर्जों का सौदा कर लिया है ।अब वह रोबोटों का निर्माण करेगा। ज़बरन मुझे उन मशीनों का हृदय बनाकर छोड़ेगा । अब आप सभी को देखना पड़ेगा  घर-घर में रोबोट आएँगे । मशीनें आदमी को गुलामी का जीवन जीने पर विवश करेंगीं; फिर उपजेगा संसार में गहरा क्षोभ और  इन सब द्वंद्वों के बीच इंसान  बनता जाएगा इलेक्ट्रॉनिक जिन्न के हाथों की सभ्य कठपुतली जो न ही खुलकर हँसने देगा  और न ही अपने दुःख पर खुलकर रोने देगा मेरे लाख समझाने के बावजूद भी इंसान ने इस पृथ्वी का सम्मान नहीं किया । उसने अपनी जरूरतों को इतना फैलाया कि जंगल भी कराह उठे । वायुमण्डल अशुद्ध हो उठा | मनुष्यों की लालची वृत्ति ने फिर भी रुकना नहीं सीखा|  आज जब मनुष्य चाँद पर अपना घर बनाने की होड़ में अपने सभी मानवीय  गुणों को ताक पर रखता जा रहा है । तो उसके रास्ते का अवरोध बनकर कोरोना नामक विषाणुके रूप में मैं ही धरती पर आ विराजा हूँ। चारों ओर जो कोहराम सुनाई दे रहा है; ये मेरे द्वारा ही निर्मित किया गया है जब तुम सब मानवीयता के केंद्र से हटकर दानवता का जीवन धारण करोगे तब मुझे तुमसे बड़ा रूप धारण कर तुम्हें लगाम लगाने के लिए कुछ अनोखा रचना पड़ेगा |जिसे न तुम और न ही तुम्हारा विज्ञान समझ सकेगा |आज जीवन से लेकर मृत्यु तक के सोलह संस्कारों की धज्जियाँ मेरे इशारे पर की जा रही हैं| जितना तुमने स्वयं को खुला छोड़ा था; उतना ही मैंने खुले घरों में तुम्हें बंदी बनाया है |
मैं समय हूँ |
 
 
 विद्यालय में एक छात्र के लिए "मैं समय हूँ" एकल अभिनय-संवाद 
को पचास विद्यालयों में तृतीय स्थान प्राप्त हुआ 
 


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