शब्दों की गूँज
माँ के दुनिया से जाने के बाद तानिया की साथी दादी थी। जिज्ञासु तानिया
दादी की हर छोटी-बड़ी क्रिया-कलाप पर नज़र रखती। उसकी दादी एक हाथ से काम करती और
दूसरे हाथ से मोबाइल देखती तो रोमांचित हो वह भी वैसा ही करने की कोशिश करती।
"दादी ये कौन था?" तानिया ने उत्सुकता से पूछा।
"चिनम्मा!"
"अच्छाSS वही चिनम्मा जो स्कूल में पढ़ाती हैं।"
"हाँ वही!"
"क्या कह रही थीं दादी चिनम्मा।" तानिया ने फिर
पूछा ।
"कुछ नहीं...निरी बेवकूफ है। स्वभावगत दादी ने बुदबुदाया।
"चिनम्मा बेवकूफ है।" तानिया ने भी दोहराया।
"क्या कहा तूने ?"दादी को अपना ही वाक्य सुनाई
दिया था।
"कुछ नहीं दादी, ये गुड़िया मेरी बहुत अच्छी मित्र है।
इसी से बोल रही थी।" तानिया, पल
में बात बनाने का गुण भी अपनी दादी से सीख रही थी। चिनम्मा,सिम्मी,पम्मी,रिम्मी जितने दोस्त उसकी दादी के हैं, उनके ही नाम तानिया ने अपनी गुड़ियों के रखे थे। दादी-पोती की बातें चल ही
रही थीं कि मोबाइल फिर बज उठा। मोबाइल रखते हुए दादी ने पोती को हिदायत दी।
"मेरी मित्र मुझसे मिलने आ रही है इसलिए तू अपनी गुड़ियों के साथ ही
खेलना...।"
"ठीक है दादी।" तानिया ने गोल-गोल आँखें घुमाते
हुए कहा और गुड़ियों का पिटारा ड्रॉइंगरूम के दूसरे कोने में जाकर खोलकर पसार लिया।
दादी मित्र की आवभगत और स्तुतिगान में दिल-ओ-जान से जुटी थी।
"चम्पा चम्पा चम्पा!"
दादी ने कई बार लगातार चम्पा नाम सुना तो उसने चीख़कर पूछ लिया।
"दादीSS ये वही चम्पा दादी हैं, जिनको आप "चम्पा चुड़ैल" कहती हो।"
तानिया दौड़कर उसका मुँह बन्द कर देना चाहती थी लेकिन चम्पा ने हाथ पकड़
लिया। कमरे की हर चीज अपनी जगह पर ठहर गई।
"अंदेशा तो था मुझे तुम्हारी फ़ितरत का मधुरिमा जी लेकिन ये नहीं जानती थी
कि तुम मित्रों के लिए इतना गन्दा बोलती हो।" मधुरिमा
पोती को घूरती रह गयी।
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दिलचस्प
ReplyDeleteबहुत अच्छी पोस्ट ।
ReplyDeleteबच्चे तो बच्चे होते हैं, भोले।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया बाल मनोविज्ञान का सुंदर चित्रण।
ReplyDeleteसार्थक संदेश देती कथा
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