गलत उच्चारण
ये
चिल्लाने का नहीं
चुपचाप
डिजिटल
होने
का समय है
कहती
है
जामुन के पेड़ पर बैठी
जामुन के पेड़ पर बैठी
कुछ कुतरते हुए
गिलहरी
गिलहरी
गलत उच्चारण
पर
ध्यान देने के लिए
ध्यान देने के लिए
टोकती
है
दसवीं पास पत्नी
दसवीं पास पत्नी
अपने प्रोफ़ेसर
पति को
रसोईघर
से
काम वालीं बाइयाँ
सीख रही हैं
ऑनलाइन
कम्प्यूटर चलाना
कम्प्यूटर चलाना
भरेंगी
वे भी
आवेदन पत्र
आवेदन पत्र
बच्चे पढ़ते-पढ़ते
सीख
रहे हैं हिडेन मैसेज
भेजने
की कला
अपने
मित्रों से
घायल
वक्त जुटा रहा है
कलपुर्जे
करेगा असेम्बल रोबोट जल्द
एक
नहीं
छोटे-बड़े
कई-कई किस्म के
सभी के
लिए
बीवियाँ
बिना रूठे
सीख
रहीं हैं
अपनी
बात ढंग से कहना
उन्हें
डर है अगर
वे गयीं रूठकर मायके
तो घर में आ जायेगी तुरंत
प्यारी-सी
रोबोटिक बीवी
जिसमें
भरा होगा
कूट-कूटकर
सेवाभाव
रोबोटिक
वीबी जानती होगी
आम को
आम ही नहीं
इमली भी कहना
पति के
अनुसार
मोबाइल
में सिमटते जायेंगे
डॉक्टर,टीचर औऱ परचूनी के दुकानें
कहता
है
खिड़की
से झाँकता हुआ
समय का
एक टुकड़ा
आदमी बनता जाएगा
इलेक्ट्रोनिक जिन्न के हाथों की
सभ्य कठपुतली
सभ्य कठपुतली
आने वाला वक्त
भूलता जाएगा खुलकर
हँसना और रोना |
भूलता जाएगा खुलकर
हँसना और रोना |
-कल्पना मनोरमा
१८.७.२०२०
बहुत ही अच्छा लिखा है
ReplyDeletehttps://yourszindgi.blogspot.com/2020/07/blog-post.html?m=0
ReplyDeleteक्या बात है..!
ReplyDeleteवाआह..!!!
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार (20-07-2020) को 'नजर रखा करो लिखे पर' ( चर्चा अंक 3768) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
--
-रवीन्द्र सिंह यादव
असहमति का कोई सवाल ही नहीं वाह क्या बात है
ReplyDeleteसुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत ख़ूब।
ReplyDeleteकठपुतली तो बन ही गया है, सभ्य के बारे में संशय है।
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteहाँ , ये समय की माँग है लेकिन लाभ हानि दोनों हैं । डिजिटल दुनिया ने भाषा के व्याकरण को विकृत कर दिया है ।
ReplyDelete-- रेखा श्रीवास्तव