मन की बेतुकी भड़ास



जब से हेमा ने अपनी मित्र सुरभि को पिंक कलर की ऊँची हील की सैंडिल पहने देखा..उसका मन भी उन्हें लेने को ललक गया था ।ये बात घर में सिर्फ़ उसकी माँ जानती थी।
"सावन आने वाला है ,बोल हेमा तुझे क्या चाहिए ?"
"कुछ नहीं भैया आप सभी मेरा बहुत ख़्याल रखते हो और इतना काफ़ी है मेरे लिए।"
"बोल क्यों नहीं देती बिटिया कि तुम्हें सुरभि जैसे सैंडिल चाहिए।" पास बैठी उसकी माँ ने कहा ।
"नहीं माँ ! वैसे भी रोली की पढ़ाई बहुत मँहगी है और मेरी जैसी बहन जो शादी के बाद भी इसी घर की होकर रह गई है...।"
"अच्छा ठीक है, तू जा अभी मेरे लिए कॉफी बना ला।"
उसके बड़े भाई ने उससे कहा और झुककर अपनी माँ से कुछ पूछने लगा।
"जी भैया, अभी लाई ।"
सावन का दिन आया तो उसके और रोली के लिए ढेर उपहार घर आये। उनमें पिंक कलर की ऊँची हील के सैंडिल देख हेमा का मन पाखी हुआ जा रहा था ।
"माँ बुआ ने तो मना किया था फिर भी डैडी उनके लिए सैंडिल ले आये हैं।" कहते हुए रोली बाहर खेलने चली गई।
"रहेगी तो वह मेरे पाँव की जूती ही न! चाहे कितनी भी सुंदर सैंडिल पहन ले।" हेमा की भाभी तमतमाकर थोड़ा ज़ोर से बुदबुदा रही थी कि इतने में हेमा उसको अपनी सैंडिल दिखाने उसके कमरे में जा पहुँची।
"क्या हुआ भाभी ?कौन है आपके पाँव की जूती ?अपनी जूतियाँ पहन कर देखिए कितनी सुंदर हैं ।"
कहते हुए हेमा ने जूतियों का डिब्बा उसके आगे रख दिया |
"अरे !मेरे लिए ...क्या जरुरत थी ?"
"हाँ भाभी, आपके लिए भी | माँ ने मेरे और रोली के साथ-साथ आपके लिए भी आपकी पसंद की जूतियाँ लाने को भैया से बोला था ।"
हेमा उपहार देकर चली गई किन्तु भाभी को अपना मन स्वयं की सोच पर थोड़ा ग्लानि से भरता हुआ-सा लगा |
"देखा माँ ! मैं इसीलिए कह रही थी कि मुझे कुछ नहीं चाहिए। दो जोड़ी कपड़े और दो रोटी ही यदि सम्मान से मिलती रहें वही बहुत होगा मुझ जैसी त्यागी हुई औरत के लिए |"
"हुआ क्या? कहो तो।" कहते-कहते माँ की आँखें भर आईं |
"कुछ भी पहन लो रहोगी तो मेरे पाँव की जूती ही। जब मैं उनके कमरे में गई तब सुना |" हेमा ने संकोच में भरते हुए अपनी माँ को बताया |
"नासमझ है वह । कुछ भी कहती रहती है और जो बिना सोचे-समझे बोलता रहता है उसकी बातों का क्या बुरा मानना।"
 बेटी को समझकर हेमा की माँ ने बहू को आवाज लगाई लेकिन सुन बेटे ने ली |
क्या हुआ माँ ? आप त्यौहार के दिन इतनी उदास क्यों हैं ?”
कुछ नहीं तू जा आराम कर मेरा मन थोड़ा खराब है, ठीक हो जाएगा |” माँ अपनी बात अभी कह ही रही थीं कि इतने में बहू भी वहाँ आ गई | सास की बात सुनकर लज्जित होने के अलावा उसके पास कुछ बचा नहीं था |


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