दूरदर्शिता


"सुन कमली, अपने हाथों को अब ज़रा सिकोड़ना चालू कर दे |"अल्पा ने अपनी काम वाली बाई से कहा तो वह खिलखिला कर हँस पड़ी और बोली ।
"भौजी, अगर हमने अपन हाथ सिकोड़ लीन्हें तो हमरे और तुमरे, दोनों के घरन में तहलका मच जाई।"
अल्पा किन्हीं गहन विचारों में मग्न थी सो पानी पीकर
रसोई से चली गई ।लेकिन अल्पा के ज़्यादा बोलने की आदत से तंग कमली फुसुर फुसुर बड़बड़ा पड़ी
"बड़ी आईं हाथ सिकोड़ लो ….सारा दिन कुछ न कुछ बोल बोल हमरी जान खाये रहती हैं ।"
"कमलीSS!"
"हाँ भौजी, का भवा ?" कमली लड़खड़ाकर गिरते-गिरते बची ।
"थोड़ी देर पहले मैंने क्या कहा था ? तूने तो सुना ही नहीं।"
"सुना भौजी, आज नल की टूटी बहुत धीरे तो चलाई रहन बर्तन धोते बखत ।"
"अरे महारानी , गोली मारो...और ये बताओ ! क्या जरूरत थी दो सब्जियाँ और इतनी गाढ़ी-गाढ़ी दाल बनाने की?"
अल्पा ने लगभग अपना आपा खोते हुए बोला तो उसका लाल-लाल चेहरा देख  कमली सन्न रह गई ।
"भौजी ,माफ करि देव अबकै ग़लती...।"
"तू तो जानती है न कमली ! कितना बुरा समय चल रहा है और कल किसने देखा? हम भी कोई धन्नासेठ नहीं और न ही मिलें चलतीं हैं हमारी  ले देकर एक दुकान है बस,उसी से...समझे ।"
अल्पा ने "थोड़ा कहा बहुत समझना" वाली नीति में सब कुछ एक साँस में कह डाला ।
"कल से एक सब्जी और पतली-सी दाल बनायें भौजी?" कमली ने नाखूनों से आटा झाड़ते हुए कहा।
"उचित होगा।"
कहते हुए अल्पा ने सबकी ओर देखा ।सहमें हुए पति और बच्चे  दाल की कटोरी में अपना भविष्य तलाश रहे थे ।
-कल्पना मनोरमा
26 . 6.2020

Comments

  1. उच्च वर्ग को छोड़ सबकी स्थिति ऐसी ही है। सामयिक लघुकथा।

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  2. बहुत कुछ कहती है कहानी ... माध्यम और नीचे के वर्ग के हालात का चित्रण ...

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