कृति का पहला जन्मदिन
8 जून 2019 में जन्मी "कब तक सूरजमुखी बनें हम" कृति का कल 8 जून 2020 को पहला जन्म दिन है | लेकिन इस कोरोना नामक बीमारी ने अनायास ही हमको कहीं भी जाकर या किसी को बुलाकर उत्सव मनाने के लिए रोका हुआ है |अपनी लाडली कृति को अपने हाथों में देखकर मन कुसुमित हो रहा है | जुग-जुग जिए मेरी मानस पुत्री | मेरे संवेदनात्मक शब्दों की यहाँ तक की यात्रा में बहुत से लोगों की सहमती और असहमति जुड़ी हुई है लेकिन मैं सभी के प्रति अनुगृहीत हूँ | वैसे तो कृति में बढ़ने घटने जैसा कुछ होता नहीं है | जो कुछ बढ़ता-घटता है वह रचनाकार के मानस पटल पर उगने वाले विचार होते हैं | या वे घटनाएँ होती हैं जो कृति के साथ जन्म लेती हैं| वे स्थितियाँ- परिस्थियाँ ही रचनाकार को एक ऐसे शब्द सफ़र की ओर बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करती हैं जिसके द्वारा वह कुछ अद्भुत रचता है | अब तो मन की वह दशा है कि " या अनुरागी चित्त की,गति समुझै नहिं कोई / ज्यों-ज्यों बूड़े स्याम रंग ,त्यों-त्यों उज्वल होय |" पिछले साल मैंने बहुत सारी पुलक और धुकधुकी के साथ अपने वरिष्ठों ,स्नेहिल जेष्ठों और सुधी जनों के समक्ष और उनके ही हाथों से इस कृति को लोकार्पित करवाया था | हमारे सुधी जनों को इसका यूँ आना बहुत मन भाया था और उन्होंने इसके साथ मेरे लेखन को भी सराहा था | इससे जुड़ी चर्चा -परिचर्चा सब कुछ आज भी मन के मधुर स्मृतियों वाले कोष में संरक्षित है |
दिल्ली जैसे शहर में रहते हुए इस कृति का अनावरण कानपुर से ह होना,कारण बस एक था कि जिन अपनों के सामने कलम साधी थी, उनका सम्मुख होना आवश्य है | इसमें मेरी भावुकता ने ही मेरे मन पर अतिक्रमण किया था लेकिन नतीज़ा अच्छा ही निकला | कानपुर निवासी अनंतिम पत्रिका के प्रबुद्ध सम्पादक आदरणीय सतीश गुप्त जी ने बड़ी उदारता और कुशलता से इस कार्यक्रम को सफलता तक पहुँचाया था | जितनी हुलास इस कृति के आने में हुई थी उतनी शायद ही पहले कभी महसूस की थी |
इस कृति ने मेरे जीवन से नीरवता को सोख लिया है । उत्फुल्लता का उपहार मेरे हाथों को नहीं, मेरे मन को दिया है क्योंकि हाथ की पकड़ी हुई चीजों को कभी न कभी हमें रखना पड़ता है, चाहे कितनी प्यारी चीज या प्यारा उपहार क्यों न हो और जो मन को मिलता है उसकी तो बात ही निराली है | मन उसको सोते-जागते कभी नहीं छोड़ता है | इसने समय के विस्तार को कैसे प्रतिपादित किया जानने में सजग बनाया है । कुल मिलाकर यदि कहूँ तो इसने मेरे प्राणों का मोल, मेरे लिए उत्तरोत्तर बढ़ाया है ।
आज मैं पुनः आभार व्यक्त करती हूँ । अपने साहित्यिक श्रेष्ठों और जेष्ठों को जिन्होंने मेरा हर सम्भव मनोबल बढ़ाया और सुमार्गी लेखन की ओर अग्रसर किया है और याद करती हूँ हमारे चहेते गीतकार कुमार रविन्द्र दादा को जिन्होंने अपने आशीर्वचनों के द्वारा इस संग्रह को चिरजीवी बनाया है |
सीखते रहना ही ज़िन्दगी है.
ReplyDeleteजी सर
DeleteCongratulations mam aapki krati ke liy
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया आप का
Deleteआपकी कृति से मिलने की इच्छा है
ReplyDeleteकितनी प्यारी टिप्पणी ❤️
DeleteJiske Man Ka Bhav Achha Uska Har Kam Achha ...... Bahot Badhiya Di 👍
ReplyDeleteआपकी पुस्तक के एक साल के होने पर बधाई।
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई हो आपको
ReplyDeleteपुस्तक के जन्मोत्सव की ढेर सारी बधाई हो बहना। कलम उत्तरोत्तर प्रगति-पथ पर अग्रसर हो, यही कामना है।
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