खंडित मूर्ति
सदियों से बुना जाता रहा है
गीतों में नसीहतों के
व्यापार को इस तरह
कि एक औरत दूसरी औरत को
घुमा-फिराकर बताती भी जाये
घुट-घुटकर मरने के
टिकाऊ तरीके
और बनी भी रहे नादान स्त्री की
टेसू-झिंझिया के खेल हों
या हो
सरिया ,सोहर और ब्याहगीत
बनाकर दीपक को साक्षी
हमेशा गाया कम सिखाया ज्यादा
जाता रहा है
कोरे मन वाली स्त्री को
दमन को हँसकर
स्वीकारने की कला
बड़ी-बूढ़ी औरतें
सीख को पिरोकर गीतों में जब-जब
कहती -मुस्कुरातीं -झूमतीं
तो आँसू खो देते अपना आपा
लेकिन स्थिर स्वर कहते
रहते हैं लगातार
ओ स्त्री ! ससुराल में जब-जब दुख तुम्हें घेरले
तो तुम निराशा में भले ही डूब जाना
किन्तु अपने मायके के लिए
मत भेजना संदेश
अपनी उदासी या परेशानी का
नहीं तो हो जाएगा अनर्थ
तुम्हारे पिता गिर जाएँगे
खाकर पछाड़
डूब जाएगी माँ
आँसुओं के समुंदर में
भाई हाँक देगा घोड़ा अपना
अँधेरी रात में
तुम्हारे पास आने को
भाभी हँसेगी किबाड़े बंद कर
और ओ मेरी प्यारी स्त्री ऐसे कष्ट
नहीं देते कभी भी
अपनों को
झिंझिया की मटकी में रखा दीपक भी
भर देता है गवाही उन्हीं की
धी मार बहू समझाने के सिद्धांत को
दमदारी से सहेजा
माँ के सँग की औरतों ने
अपने भावुक हृदय में
और बनातीं गई
पत्थर की खण्डित मूर्तियाँ
और स्त्री होती गई
पूजा परिधि के बाहर
खंडित मूर्ति पूजने की जगह
पुरुष ने बना लिया उसे मेज
और मोमबत्ती लगाने का स्टेंड
पुरुष सेंकता गया रोटियाँ
उसकी दबी-कुचली
दहकती साँसों की अँगीठी पर
और स्त्री
मरती गई स्त्री के हाथों ।
-कल्पना मनोरमा
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