अँखुआये ताले
पर्यावरण दिवस पर रिश्तों में हरियाली लौटे....... को समर्पित
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"हैलो मिताली! कैसी हो बेटा।" सात समुंदर पार से नीता ने फोन पर बेटी से पूछा, तो भावविभोर हो,बेटी बोल पड़ी
" माँ, हम तो अच्छे हैं तू घर कब आएगी ?"
"बेटा ,मुझे नहीं लगता कि अब तेरा भाई मुझे अकेले रहने के लिए घर भेजेगा । लगता है मैं कभी न..।"
"क्यों माँ ? भैया आप को घुमाने के लिए बोलकर ले गए थे ।"
"हाँ तू सच कह रही है, लेकिन अब योजना बदल गई।"
माँ का वाक्य सुई की तरह मिताली के दिल में गढ़ा तो आँसू छलक पड़े ।
"क्यों माँ ? भैया आप को घुमाने के लिए बोलकर ले गए थे ।"
"हाँ तू सच कह रही है, लेकिन अब योजना बदल गई।"
माँ का वाक्य सुई की तरह मिताली के दिल में गढ़ा तो आँसू छलक पड़े ।
"बेटी कुछ तो बोल ।"
मिताली न बोली मानो उसके सारे शब्द चुक गए थे। बेटी के मौन से माँ विचलित हो उठी लेकिन स्वयं को ज़ब्त करते हुए उसने बताया- "मिताली, कई दिनों से एक बात तुझसे कहना चाहती हूँ । पहले बता मेरी बात का बुरा तो नहीं मानेगी ?"
बेटी ने माँ को आश्वासन दिया कि वह अपने मन की कोई भी बात उसको बता सकती है ।
बेटी ने माँ को आश्वासन दिया कि वह अपने मन की कोई भी बात उसको बता सकती है ।
"देख मिताली वैसे तो दामाद जी अच्छा कमाते हैं और तुझे सुंदर -से घर में भी रखते हैं । लेकिन हम चाहते हैं कि तू किराये का मकान छोड़कर बचपन वाले अपने घर में शिफ़्ट हो जा। शहर भी एक है तो शिफ़्ट करने में ज़्यादा दिक्कत नहीं होगी।"
बेटी के आत्मसम्मान का ध्यान रखते हुए बेटे के प्रस्ताव को, माँ ने हिम्मत जुटाकर बेटी के आगे रख ही दिया ।
"ये क्या कह रही हो माँ ? मुझे क्या भाई का दुश्मन बनाने का इरादा है?"
"शुभ शुभ बोल बेटा, ये निर्णय मेरे अकेले का नहीं, बल्कि तेरे भाई-भाभी और तेरे भतीजे का है | जब मिलोगी तब पूरी बात बताऊँगी | मुझे पता है तुझे भी सुनकर अच्छा लगेगा |"
"इस हाहाकारी समय में भाई-भाभीऔर भतीजा मेरे बारे में ऐसा कैसे सोच सकते हैं ?" वह मन ही मन बुदबुदाई और
अपने जीवन से जुटाए-अनुभवों के उदाहरण माँ के सामने पेश करने लगी ।
"सुन मिताली,तू इतना दिमाग़ कब से लगाने लगी?"
ये वाक्य उधर से मिताली के भाई द्वारा कहा गया था। अचानक भाई की आवाज़ सुनकर वह चौंक पड़ी ।
"माँ ,आपने बताया क्यों नहीं कि फोन लाॅडस्पीकर पर डाला हुआ है, नमस्ते भैया !"
ये वाक्य उधर से मिताली के भाई द्वारा कहा गया था। अचानक भाई की आवाज़ सुनकर वह चौंक पड़ी ।
"माँ ,आपने बताया क्यों नहीं कि फोन लाॅडस्पीकर पर डाला हुआ है, नमस्ते भैया !"
मिताली की जान पाँव के तलवों में धड़क उठी।
"मिताली !"
"हाँ भैया!"
"सुन, माँ डुप्लीकेट चाबी बड़ी माँ को दे कर आई थी। जा उनसे चाबी ले और शान से अपने घर शिफ्ट हो जा। और हाँ ! दीपावली पर हम माँ के साथ तेरे घर आ रहे हैं। बचपन वाले सारे गमलों में फूल खिले मिलने चाहिए ।"
भाई ने बहन पर दुलार जताते हुए कहा और साथ में एक सम्मिलित स्वर उसके कानों में गूँज उठा ।
"मिताली !"
"हाँ भैया!"
"सुन, माँ डुप्लीकेट चाबी बड़ी माँ को दे कर आई थी। जा उनसे चाबी ले और शान से अपने घर शिफ्ट हो जा। और हाँ ! दीपावली पर हम माँ के साथ तेरे घर आ रहे हैं। बचपन वाले सारे गमलों में फूल खिले मिलने चाहिए ।"
भाई ने बहन पर दुलार जताते हुए कहा और साथ में एक सम्मिलित स्वर उसके कानों में गूँज उठा ।
"मिताली हम तुम से बहुत प्यार करते हैं ।"
ढबढबाई आँखों से उसने मोबाइल के शीशे में अपना चेहरा देखा तो उसे लगा कि जैसे उसकी माँ ही उसे प्रेम से निहार रही हो |
कल्पना मनोरमा
5 .6.2020
5 .6.2020
पारिवारिक स्नेह के अटूट बंधन को कितनी ख़ूबसूरती से आपने शब्दों में पिरो दिया ।
ReplyDeleteसार्थक संदेश देती कथा।
ReplyDeleteएक संदेश भरी अत्यंत सुंदर पोस्ट
ReplyDeletePyaar bhri post...Badhai aapko
ReplyDeleteआज भी बहुत से परिवार हैं जहाँ ऐसे रिश्ते खूब जिंदादिली के साथ धड़कते हैं.
ReplyDeleteसुन्दर
परिवार के सूत्र प्रेम के धागों से जुड़ें तो रिश्तों की सार्थकता स्वतः बनी रहती है ... अर्थ का महत्व रिश्तों से आगे नहीं होना चाहिए ... सुंदर कहानी ...
ReplyDeleteरिश्ते में इतना प्यार विरले ही देखने को मिलता है। पर जहाँ हो वहाँ सदा सहेजकर रखना चाहिए। सुन्दर कहानी।
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