बाबा की इज़्ज़त

 


गिन्नी और शैली गहरी मित्र थीं। एक दिन फ्रूट ब्रेक में कौन ज्यादा समझदार है, विषय पर दोनों में झगड़ा हो गया। शैली ख़ुद को समझदार बताते हुए गिन्नी पर इंपोटेड रुआब झाड़ने लगी। गिन्नी अपने को बहुत अकेला और निरीह पा रही थी।

"कैसे समझाऊँ इस शैली की बच्ची को कि मैं हमेशा से समझदार हूँ?" गिन्नी ने मन ही मन सोचा और अपनी देसी युक्ति लगाकर बोली।

"शैलीअगर तू बहुत समझदार है तो ये बता कि कीमती चीज़ सहेजने के लिए किसे दी जाती है?"

"स्पष्टतः जिसे सहेजने की बुद्धि होगी। जो ज्यादा समझदार होगा।शैली ने आँखें मटकाते हुए कहा।

"ओ माई गोड! फिर तो मैं बहुत समझदार हूँ।" गिन्नी ने ताली पीटते हुए कहा।

"मतलब क्या है तेरा?" शैली चिढ़कर बोली।

"तू चुप रह शैली की बच्ची। मैं बहुत ही समझदार हूँ, बस तू ये जान ले।गिन्नी उछल पड़ी।

"चल झूठीतूने ऐसा कुछ प्रूफ नहीं दिया जिससे तू समझदार साबित हो सके।"

"अरे! तू बता! बाबा की इज़्ज़त दुनिया की सबसे कीमती चीज़ होती है?”

“सो व्हाट?”

“बाबा ने मेरे पैदा होते ही उसे मुझे सौंप दी थी। अब बता! हुई न मैं समझदार ?" गिन्नी गर्व से भर गई।

"तेरे बाबा तुझे क्यों देंगे कीमती चीज़तुझसे बड़ा तो तेरा भाई है?" शैली बोली।

"हाँहै तोमगर कीमती चीज़ सहेजने की अक्ल उसे कहाउसे तो सिर्फ बाबा की दौलत सहेजने को सौंपी गयी है। अपनी सबसे कीमती चीज़ ‘पगड़ी’ मुझे।" गिन्नी की आँखें ख़ुशी से लबरेज थीं।

"कब से खोज रही हूँ। तुम दोनों यहाँ बैठ कर गप्प लगा रही होचलो अब केतकी मैडम की डांट खाओ।स्कूल की आया ने दोनों को क्लास की ओर खदेड़ दिया।

***

 

Comments

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(०७-१०-२०२१) को
    'प्रेम ऐसा ही होता है'(चर्चा अंक-४२१०)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    ReplyDelete
  2. वाह। क्‍या बात है। शब्‍दों का खेल भी है और नजर-नजरिये का अन्‍तर भी। पढ कर अच्‍छा लगा।

    ReplyDelete
  3. वाह क्या लव कथा है बहुत ही अच्छी! सच में पढ़कर बहुत अच्छा लगा!

    ReplyDelete
  4. गहनतम रचना। वाह बहुत खूब।

    ReplyDelete
  5. वाह!बेहतरीन ।

    ReplyDelete
  6. बहुत सुंदर सारगर्भित लघुकथा ।

    ReplyDelete
  7. आप सभी मित्रों का बहुत धन्यवाद आप सभी का

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

कितनी कैदें

बहस के बीच बहस

आत्मकथ्य